ब्लॉग मित्र मंडली

25/7/10

गोविंद से गुरु है बड़ा




 


गुरु‌र्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्मः , तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥

*** प्रणाम है मेरे गुरुजन को ***
प्रणाम मेरे  स्वर्गीय
पूज्य बाबूजी की चिर स्मृतियों को !
प्रणाम परम श्रद्धेय स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज के पावन चरणों में , 
जिन्हें मैं अपना आध्यात्मिक गुरु मानता हूं !
प्रणाम आदरणीय संगीतज्ञ गायक डॉक्टर रामेश्वर आनन्द जी सोनी को , 
जिन्हें मैं एकलव्य जैसे शिष्य भाव से गुरु मानता हूं ।

प्रस्तुत है , गुरु - शिष्य - संबंध में कहे गए मेरे कुछ दोहे

गोविंद से गुरु है बड़ा

शिल्पी छैनी से करे , सपनों को साकार !
अनगढ़ पत्थर से रचे , मनचाहा आकार !!
माटी रख कर चाक पर , घड़ा घड़े कुम्हार !
श्रेष्ठ गुरू मिल जाय तो , शिष्य पाय संस्कार !!
चादर रंगदे रंग में , सुगुणी गुरु रंगरेज !
ज्यूं ज्यूं प्रक्षालन करे , बढ़े शिष्य का तेज !!
गोविंद से गुरु है बड़ा , कहे गुणी समझाय !
गुरु के आशीर्वाद से , शिष्य परम पद पाय !!
'गुरु के सम हरि ना गिनूं , तज डारूं मैं राम !'
ऐसी श्रद्धा जो रखे , उनके संवरे काम !!

श्रेष्ठ गुरू संसार में , विश्वामित्र - वशिष्ठ !
गुरू - कृपा से रामजी , बने जगत के इष्ट !!
मिल गए गुरु संदीपनी ; ली उनसे आशीष !
ग्वाले ने गीता रची , बने कृष्ण जगदीश !!
एकलव्य ; गुरु - दक्षिणा दे'कर हुआ निहाल !
द्रोणागुरु - मन जीत कर , जीत गया वह काल !!
रामदास गुरु ; शिष्य श्री छत्रपति शिवराज !
गर्वित भारत मां हुई , हर्षित हिन्दु समाज !!
परमहंस गुरु मिल गए , धन्य विवेकानंद !
सुभग शिष्य - गुरु - योग से मिले सच्चिदानंद !!
एक बूंद मोती बने , इक सागर बन जाय !
जितनी करुणा गुरु करे , शिष्य - मान अधिकाय !!
शिष्यों ! गुरु का कीजिए , निर्मल मन से मान !
मिलते , गुरु - आशीष से सुख , सम्पति , सम्मान !!
मात्र समर्पण से मिले , गुरुजन की आशीष !
हाथ जोड़' रख दीजिए , गुरु - चरणों में शीश !!
गुरू तपाए ; शिष्य तप - तप ' कुंदन बन जाय !
सच्चा गुरु संसार में , भाग्यवान ही पाय !!

ना धन - दौलत , मान - यश , काम - तृप्ति की चाह ! 
गुरु - पद - रज राजेन्द्र को , सही दिखाए राह !!

-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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*** इन दोहों की गेय प्रस्तुति यहां सुनें ***


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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आज का विशेष उपहार
वयोवृद्ध गायक 80 वर्षीय आदरणीय रामेश्वरआनन्द जी सोनी का विस्तृत परिचय कभी विस्तार से देने का प्रयास रहेगा , अभी उनकी कम्पोजीशन , उनके मधुर स्वर में विष्णु खन्ना के गीत के रूप में प्रस्तुत है । 
बोल हैं - "तुम जितना मधु घोल रही हो , उतनी प्यास कहां से लाऊं "



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आपकी प्रतिक्रिया , सहयोग , स्नेह और आशीषों के लिए आप सबका हृदय से आभार !
आशा है ,  आपको भी … !
जी हां , आपको भी मेरे प्रयास  पसंद आ रहे हैं ना ?
झिझक और नाराज़गी , कोई हो … तो , छोड़ कर 
आप भी समय निकाल कर 
अपने बहुमूल्य सुझावों और प्रतिक्रियाओं के ख़ज़ाने से कुछ हीरे - मोती 
हम पर लुटा भी दें अब !
ये हुई न बात !

भा!
भा! भा!

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22/7/10

मन हार न जाना रे !


आज प्रस्तुत है , 
आशा का संचार करता , मेरी पसंद का ,
मेरा लिखा और मेरे द्वारा धुन बना कर गाया हुआ एक गीत 

 मन हार न जाना रे !


वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
स्याह कलंकित रैन से अगला चरण सुरम्य सवेरा है !
मन हार न जाना रे !


जिन दीयों की चुकी स्निग्धता , वे प्रकाश कब तक देंगे ?
वे परिवेश प्रदूषित कर के , धुआं - कुहासा भर देंगे !

वातावरण परिष्कृत करने '  रवि नव धूप बिछाएगा !
अस्तु , मिटे अविलंब यहां जो कल्मष धुआं अंधेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है ! 
मन हार न जाना रे !



युग अभिशप्त ; श्रेष्ठ की कोई परख कसौटी भाव नहीं !
गिरवी जिह्वा नयन हृदय सब ; सत्यनिष्ठ सद्भाव नहीं !

अभय , प्रलोभन - रहित आत्मा मूल्यांकन करती ; इसने
यत्र तत्र सर्वत्र  नित्य  सुंदर शिव सत्य उकेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !



किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई ?
शिथिल न हो मन , क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई !

निर्मलता निश्छलता सच्चाई ,  संबल शक्ति तेरे !
कुंदन तो कुंदन है , क्या यदि कल्मष ने आ घेरा है ?
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar


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गीत : मन हार न जाना रे !
यहां सुनिए !


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar


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और यहां  पेंसिल से बनाया मेरा स्वयं का चित्र
 बीते ज़माने की एक और निशानी


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आपकी आत्मीयता !
आपका प्रेम !
आपका अपनत्व !

पा'कर अभिभूत हूं मैं !


हा र्दि  भा र  !

नये मित्रों का उन्मुक्त हृदय से स्वागत  है !
 
आ रहा हूं पुनः , शीघ्रातिशीघ्र नई पोस्ट ले'कर

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16/7/10

साहित्यिक मिलीभगत पर पांच व्यंग्यात्मक कुण्डलियां


मेरी सैंकड़ों कुण्डलियों में
साहित्यिक गैंग , गुटबंदी - लॉबियों और साहित्य में मिलीभगत पर व्यंग्यात्मक कुण्डलियों की एक लम्बी शृंखला भी रच रखी है मैंने ।
समय समय पर इन कुण्डलियों के सदुपयोग के अवसर आते हैं …

मित्रों !

आप भी अपने आस पास की पहचानी - अनजानी
साहित्यिक घटनाओं - दुर्घटनाओं से मिलान करते हुए
 इन पांच कुण्डलियों का जी भर आनन्द लें …


बड़ा सरल यह काम

नाम कमा तू साथ ही , कमा मुफ़्त में दाम !
कब्जा कर अनुदान पर , कभी हड़प इन्आम !!
कभी हड़प इन्आम ,  यार , कवि - शायर  बनजा !
इधर - उधर जितना मिले , निर्लज हो ' चरजा !!
क़लमघिसाई कर फ़क़त , बड़ा सरल यह काम !
दाम भी  मिले  मुफ़्त में  हो जाता  है  नाम !!


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

गुणों की किसे गरज

ठोठ - ठगोरे मिल गए ;  दोनों के ही  ठाठ !
जो पाते औकात बिन , खाते हैं मिल बांट !!
खाते  हैं  मिल  बांट ' गुणों की किसे गरज है ?
योग्य गुणी हो जो भी , किसको कहां हरज है !?
गर्दभ  सूने  खेत  में ,  लगा रहे ज्यों  लोट !
सृजन - क्षेत्र में मौज यूं  करे ठगोरे - ठोठ !!


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

सिक्के खोटे

खोटे सिक्कों की जमी , बाज़ारों में  धाक  !
खरे नोट की काट ली , बीच राह में नाक !!
बीच राह में नाक ; चिल्ल - पों करें अनाड़ी !
मात दे रही  यान को  आज गद्हा - गाड़ी !!
बनते  बुद्धिजीवी  जिनको अक्ल के टोटे !
सोने की मोहरों को  पीटें  सिक्के  खोटे  !!


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

नूंत चेलियां चेले

फ़ोकट का कुछ चाहते अगर हड़पना आप ?
अकादमी का श्वान तक समझो अपना बाप !!
समझो अपना बाप , वो पैसा दिलवा दे !
नूंत चेलियां चेले , आयोजन - ठेका ले ले !!
शायर - कवि सब चूमते आएंगे चौखट !
लूट का हिस्सा दो , फोटो खिंचवाओ फ़ोकट !!


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

घर में घुस गए

सूर  कबीरा  मिल  गए ,   रोते '  बीच  बज़ार !
उनके घर में घुस गए कुटिल  भांड  लठमार !!
कुटिल  भांड  लठमार ,  करे साहित्य की दुर्गत !
परिभाषाएं बदल कर सृजन कर दिया विकृत !!
संकट  है  साहित्य  पर …  कैसे  होगा दूर ?
सिसके  कबिरा  जायसी  तुलसी  मीरा  सूर  !!


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar


आपके सहयोग और स्नेह के लिए मैं हृदय से आभारी हूं ।

आप अगर हैं सच के  साथ
हर साज़िश की होगी  मात
 


…मिलते हैं फिर …


7/7/10

ग़ज़ल ' ख़्वाब क्या नींद तो मयस्सर हो ' ग़ज़ल 'नीं गाज्यो नीं बरस्यो मेह '




आज प्रस्तुत हैं दो ग़ज़लें 

ग़ज़ल

ख़्वाब क्या नींद तो मयस्सर हो
फ़िर… ज़मीं , टाट , नर्म बिस्तर हो

सब्र दरिया से क्या मिलेगा उसे
जिसकी ज़द में अगर समंदर हो

जो तुझे दूं , मुझे वही तू दे
मुआमला आपसी बराबर हो

ना हो दीनी फ़क़त , हो इंसानी
एक ऐसा भी तो पयंबर हो

कुछ यक़ीं भी कभी तो लाज़िम है
हर घड़ी पास कैसे संगज़र हो

ज़िंदगी मार्च ना जुलाई हो
कुछ नवंबर हो , कुछ दिसंबर हो

आईना देख कर मुझे बोले
तू न हो यां तेरा सुख़नवर हो

राहते - जानो - दिल का सामां है
शाइरी में भला क्यों नश्तर हो

सच किसी को कहीं गवारा नहीं
होंट सी ' लें राजेन्द्र बेहतर हो


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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राजस्थानी ग़ज़ल

नीं गाज्यो नीं बरस्यो मेह
सौ जग था' बिन तरस्यो मेह
 
नित नित 'डीकै गोरलड़्यां
हुयग्यो छैलभंवर - स्यो मेह
 
लाड लडाईजै घर - घर
मोभी लाडकंवर - स्यो मेह
 
आभै सूं  उ त र् यो  समदर
खेतां फूल्यो - सरस्यो मेह
 
राजिंद रा नैणा परस्यो
झर झर ' बरस्यो हरस्यो मेह


-राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

 
राजस्थानी ग़ज़ल
भावानुवाद
न तो बादल ही गरजे , न बरसात ही हुई ।
मेह ! ( वर्षा ! ) सारा संसार तुम बिन तरस गया है ।
हमेशा हमेशा नवयौवनाएं तुम्हारी प्रतीक्षा करती हैं । 
मेह ! तू तो उनके सजन - प्रियतम की तरह हो गया ।
तुम्हारे लाड़ तो घर घर लडाए जा रहे हैं , 
मेह ! तू तो ज्येष्ठ लाडले बेटे की तरह हो गया है ।
आसमान से समुद्र उतरा , 
और मेघ खेतों में पुष्पित पल्लवित हो' सरस उठा ।
राजेन्द्र के नैनों का स्पर्श करके 
मेह झर झर बरस गया , और हर्षित हो उठा ।

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पिछली पोस्ट्स पर
आप द्वारा मिले स्नेह प्यार और दुआओं के लिए
हृदय से आभारी हूं ।
याद रहे , आपके दम से ही हम हैं ।


गर्मी से बचाव रखें

यहां आते रहना जरूरी नहीं , बहुत बहुत ज़्यादा ज़रूरी है …
 JJJ  JJJ  JJJ

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