दंभ विद्वेष पर गुणों की विजय
बुराई पर अच्छाई की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
अधर्म पर धर्म की विजय
के प्रतीक
विजयदशमी के अवसर पर
हार्दिक मंगलकामनाएं !
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तबसेअब
दशहरा विजयदशमी विजयोत्सव
क्या से क्या स्वरूप ले चुका है
और आवश्यकता किस बात की है
इस संबंध में कहे कुछ दोहे प्रस्तुत हैं
कितने रावण !
काग़ज़ और बारूद का पुतला लिया बनाय !
घट में रावण पल रहा , काहे नहीं जलाय ?!
मात्र मनोरंजन करें , हम सब सालों - साल !
मिट मिट कर फिर से बने रावण वृहद विशाल !!
लाख – करोड़ों खर्च कर’ हाथ लगावें आग !
इससे बेहतर , बदलिए दीन – हीन के भाग !!
लाखों हैं बेघर यहां , लाखों यहां ग़रीब !
मत फूंको धन , बदलदो इनका आज नसीब !!
हर बदहाली दहन हो , जिससे देश कुरूप !
रोग अशिक्षा भुखमरी , रावण के सौ रूप !!
विजय पर्व आधा अगर , इक राजा इक रंक !
पूर्ण विजय होगी , मिटे जब हिंसा - आतंक !!
जलते पुतले कर रहे हम सब का उपहास !
कितने रावण ठाठ से , रहते अपने पास !!
सिरजें रावण हाथ से , तनिक नहीं अफ़सोस ?
रावण रग-रग में रमे , काहे का जयघोष ?!
जल जल कर भी ना जले , खेल करो फिर बंद !
या… रावण – निर्माण का , अब तोड़ो अनुबंध !!
लाखों रावण फिर रहे , लिये’ कुटिल मुसकान !
इक पुतले का दाह कर’ क्यों करते अभिमान ?!
थोथे पुतले फूंक कर करें न झूठा दम्भ !
जीवित रावण फूंकना आज करें आरम्भ !!
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
*****
***** आगमन हेतु आभार *****
***** समर्थन हेतु साधुवाद *****
***** प्रोत्साहन पूर्ण प्रतिक्रिया हेतु प्रणाम *****
***** आप सब सपरिवार स्वस्थ – सानन्द रहें *****
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55 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर और प्रासंगिक भाव वाले दोहे रचे हैं.... राजेन्द्रजी.....
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी
राजेन्द्र जी आई तो थी पिछली पोस्ट के लिए पर यहाँ नयी मिली .....
सबसे पहले विजय दशमी की शुभकामनाएं .....
दोहों के विषय में क्या कहूँ .....
सभी आईना दिखा रहे हैं .....
रावण कहाँ नहीं दिखता ...
'यहाँ' भी और समाज में भी .....!!
हाँ ये सीख अच्छी है ....
इसके पीछे इतना धन व्यय करने के बजाए गरीबों को बाँट दिया जाये ...
जलने के बाद भी रावण कहाँ मरते हैं .....
वो तो हम सब में जिन्दा है ....!!
यहाँ दशहरा नहीं होता ..दुर्गा पूजा होती है ....
पंडालों पर लाखों खर्च किया जाता है और मूर्तियाँ सजाने पर भी ....
और फिर सब पानी में बहा दिया जाता है .....
जीवित रावण फूंकना अब करें आरम्भ ....
आगाज़ अच्छा है ....
शुरुआत करें......?
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
सुंदर दोहे लिखे आपने तो.... दशहरे की शुभकामनायें
सुन्दर भाव वाली रचना के साथ सुन्दर सार्थक चित्र और एक बहुत बड़ा सन्देश ... दशहरा पर शुभकामनाएं ..
बहुत सुन्दर दोहे -आज के सन्दर्भ में ,
सच्चे अर्थों वाली रचना ,
बहुत बहुत बधाई !
सटीक और सामयिक दोहे .
बधाई.
- विजय तिवारी 'किसलय'
आपके ही समतुल्य मेरे भी विचार हैं.
आपने मेरे विचारों को छंद के इतने सुदर वस्त्र दिए हैं कि मन मुग्ध हो gyaa.
आपके ही समतुल्य मेरे भी विचार हैं.
आपने मेरे विचारों को छंद के इतने सुदर वस्त्र दिए हैं कि मन मुग्ध हो gyaa.
बहुत सार्थक दोहे कहे हैं आप ने
सच है अगर किसी एक का भी घर ग़रीबी की मार झेल रहा है तो रावण कहां मरा?अगर अशिक्षा ,भुखमरी जैसी स्थिति है तो कारण किसी न किसी रूप में रावण का विद्यमान होना ही है
बधाई हो विजय दशमी की और सुंदर रचना की भी
बहुत सुंदर
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी
सभी दोहे बहुत उपयोगी है!
--
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
मन का रावण नित्य ही, हरत पवित्र विचार,
निर्मम हो पहचान लो, कर डालो संहार।
राजेन्द्र जी , रावण और रावण दहन पर आपके विचारों की प्रस्तुति अच्छी लगी । लीक से हटकर सोचने का साहस बहुत कम लोग करते हैं । सचमुच आज रावण चारों ओर दिखाई दे रहे हैं , विभिन्न रूपों में ।
आज के परिवेश में विचारों में परिवर्तन की ज़रुरत है । बधाई और शुभकामनायें ।
दशहरा के अवसर पर बहुत सामयिक और अच्छे आपके दोहे पढ़ने को मिले.आपके लेखन में ज़बरदस्त मेसेज और शैल्पिक कसाव देखने को मिलता है.
मेरा भी एक दोहा देख लें:-
राम तुम्हारी भी रही ,लीला अपरम्पार.
एक दशानन मर गया,पैदा हुए हज़ार.
दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें.
कुँवर कुसुमेश
मेरी नई पोस्ट ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com पर आपकी पारखी दृष्टि का इंतज़ार कर रही है.
बहुत अच्छी सार्थक रचना बहुत सारी बातो का समावेश अपने में लिए हुए थोथे पुतले फुक कर करे न झूठा दंभ, जीवित रावन फुकना आज करे आरम्भ वास्तव में आज चारो और रावन रूपी सैकड़ो सिर वाले राझस घूम रहे है संहार करना है तो हमें इनका करना होगा और यही वजह है की 100 -100 फिट के रावन जलाये जा रहे है !
बहुत सुंदर
आपको विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाये
भईया बेहतरीन, सटीक और सामयिक अभिव्यक्ति के लिए आपको साधुवाद. साथ ही आपको एवं आपके परिवार, इष्ट मित्रो सहित समस्त सम्माननीय पाठकों को विजयोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.
यह भी पढ़ें: "रावन रहित हो हर ह्रदय" http://smhabib1408.blogspot.com/
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
स्वर्णकार जी, सभी दोहे सार्थक हैं
विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
sabse pahle vijaydashmi ki haardik shubhkamnayen.
aapki rchna ya raavan ke dohe ke liye kya kahun ..taareeph ke liye shabd bhi kam pad jayenge....ati uttam...atiuttam.ati...ati...ati...uttam.god bless you.
असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!
HAR DOHAA LAZAVAB HAI BHAI. KAMAAL KARTE RAHATE HAI AAP...
SHUBHKAMANAYE.....
वाह वाह ..विजयादशमी को पढी गई अब तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट । एक एक शब्द सच है .....शुभकामनाएं
साहसिक रचना, राम रूपी तीर छूट चूका है रावण को मरना ही पड़ेगा. हार्दिक इच्छाहै कि जन-जन तक ये दोहे पहुंचे और तन-मन से स्वीकार किये जाए. समाज में जाग्रति लाने वाले एक और कबीर का उदय होता मुझे नज़र आ रहा है. विजय दशमी की शुभ कामनाएं आपको एवं सभी ब्लागर साथियो को.
-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com
शुभकामनायें !
बेहतरीन !
मुझे पोस्ट अच्छी लगी और रवाण दहन की परंपरा बंद हो इस से इत्तेफ़ाक़ न रखते हुए भी यह मानता हूं कि सचमुच आज रावण चारों ओर दिखाई दे रहे हैं , विभिन्न रूपों में। पर दहन न कर क्या हम जो चाहते हैं पा लेंगे? हां यह अवश्य है कि आज के परिवेश में विचारों में परिवर्तन की ज़रुरत है।
# आदरणीय मनोज जी , मेरा आशय यह है कि जो धन आतिशबाजी और पुतलों के निर्माण में व्यर्थ गंवाया जाता है , उस धन को सकारात्मक परिणामों के लिए खर्च किया जाए तो शायद कुछ वर्षों बाद महंगाई , भुखमरी , बेरोज़गारी , अशिक्षा , रोगों , आतंक पर विजय पा'कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ जा सकता है ।
कितनी विचारणीय बात है कि जानते-समझते हुए दशहरे की शाम और दीवाली की रात करोड़ों -अरबों रुपये जला कर राख कर दिए जाते हैं ।
मुझे संतुष्टि है कि आपने मेरे विचारों के साथ सहमति भी जताई है , यह कह कर कि "यह अवश्य है कि आज के परिवेश में विचारों में परिवर्तन की ज़रुरत है।"
आभार …
बधाई इतने सार्थक दोहों के लिये।
बहुत सुन्दर दोहे|
विजयादशमी के पर्व की ढेरों शुभकामनाएं|
बहुत सुन्दर दोहे ...जब हमारे आसपास सैकड़ों रावण विचरण कर रहे हैं , तो केवल एक रावण को हर वर्ष जलाने का क्या अर्थ..बहुत समसामयिक प्रस्तुति..बधाई...
राजेन्द्रजी,
सर्वप्रथम विजयादशमी की शुभकामनायें।
आपकी कलम जिन विषयों पर चल रही है व न केवल सराहनीय है बल्कि पूजनीय भी है। इन विषयों पर आजकल कहां, कौन लिख रहा है? और कितने हैं जो इस तरह के पाठक हैं। मुझे हृदय से यह बेहद सुखद लगा कि आप कुछ ऐसा लिख रहे हैं जिसमें जीवन का असल अर्थ है। धन्यवाद स्वीकार कीजिये।
पहली बात तो यह है कि राम के सन्दर्भ में जितना कुछ लिखा जाता है..मेरा मस्तक नमन करता है और ऐसे लेखन पर टीका-टिप्पणी की ही नहीं जा सकती। मैं मानता हूं कि ईश्वरीय कृपा के अतिरिक्त कोई माइकालाल इस तरह नहीं लिख सकता। आप पर कृपा है और इसी कृपा को मेरा स-आदर प्रणाम है।
कहीं सुना था……
किस किस रावण मार भगाऊँ,
किस किस लंका आग लगाऊँ।
घर घर लंका,जन जन रावण,
इतने राम कहाँ से लाऊं॥
आदरणीय राजेंद्र जी .... क्या कहू रचना के बारे में ... अमूल्य है आपकी ये रचना ... यादे एक एक दोहे की व्याख्या की जाए तो कई पन्ने भर जाएंगे... बहुत गहरी बातें कही हैं आपने ... शुभकामनाएं
अच्छी लगी ये पोस्ट सटीक और सामयिक
rochak doho ke saath sundar prastuti..
राजेंदर जी
काफी सुंदर दोहों की रचना की है आपने ,आपकी प्रोफाइल देखकर आपके बहुआयामी व्यक्तित्व की जानकारी मिली ,इसलिए समर्थक भी बन गया ,
जिस आशय को लेकर आपने इन दोहों की रचना की है ,रावण को मारने की शुरुआत तो हमें अपने आपसे करनी होगी ,
आप मेरे ब्लॉग पर पढ़ें :
"रावण को क्योँ जलाते हैं ,जब हम राम नहीं बन पाते हैं "
बहुत सुन्दर ....
आज जरुरत है रावण कि रख करनेकी ...कब हो पायेगा ...
# आदरणीया डॉ. मोनिका शर्मा जी
आपके अपनत्व और उत्साहवर्द्धन के लिए आभारी हूं ।
किरपा-दीठ बणी राखज्यो सा … घणीमै'र !
साभार …
# आदरणीया हीर जी
जी हां , रावण कहां नहीं दिखता …
'यहाँ' भी और समाज में भी … …!!
… … ,
लेकिन रावण जहां भी है , दुनिया थूकती उसी के मुंह पर है …
और नाश भी रावण का ही तय है
आपके पधारने का शुक्रिया !
आभार !
# आदरणीया डॉ.संध्या गुप्ता जी
नमस्कार !
किसी पोस्ट पर आपकी उपस्थिति ही अत्यंत महत्व रखती है ।
आभार …
#
अले अले चैतन्य राजाबाबू
आऽऽऽप ! मेले यहां ! !
मैं तो धन्य हो गया …
आपके नन्हे नन्हे पांवों की आहट सुनने की अब तो प्रतीक्षा रहा करेगी ।
आपके ब्लॉग पर मैं हो तो आया ,
प्यारी प्यारी तस्वीरें देखने में ही इतना खो गया कि कुछ भी लिखना भूल गया ।
बहुत जल्दी फिर आऊंगा …
बहुत बहुत प्यार !
# डॉ. नूतन - नीति जी
आप द्वारा साथ लगे चित्रों पर भी प्रतिक्रिया से लगा कि -
हां , ब्लॉग को अलग पहचान देने के हमारे हर सार्थक प्रयास पर ध्यान तो दिया जा रहा है …
आभार !
#आदरणीय मिसिर जी
प्रणाम ! आगमन और सटीक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूं …
कृपया आते रहें , प्रेरणा देते रहें …
# आदरणीय विजय तिवारी किसलय जी
पहली बार आप मेरे यहां पधारे हैं , प्रणाम ! स्वागत !
रचना को आशीर्वाद के लिए आभार !
कृपया , आगे भी परखते रहें , प्रेरणा देते रहें ।
साभार
# प्रिय बंधुवर प्रतुल वशिष्ठ जी
मेरी रचना में आपके मन के भाव आ सके , यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात है ।
…क्योंकि आपका मन , जितना मैंने जाना है … सौंदर्य एवं गुणों का गहरा सागर है ।
अतः आपके मन का किसी से किसी भी रूप में जुड़ाव होना परम सौभाग्य की बात है ।
प्रोत्साहन के लिए अभार !
# आदरणीया दीदी इस्मत ज़ैदी जी
प्रणाम !
आप जैसी विदुषी का मेरे साथ विचार-साम्य पा'कर
तसल्ली हो जाती है कि मैं ग़लत दिशा की ओर अग्रसर नहीं हूं ।
… और आपका आना हर बार लगता है बहुत बड़ा बेशक़ीमती उपहार मिल गया !
आभार !
# प्रिय मयंक भारद्वाज जी
स्वागत और शुक्रिया !
# आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
प्रणाम !
स्नेह-आशीर्वाद के प्रत्युत्तर में शब्द नहीं हैं ।
संभाल ज़रूर लिया करें ,
ताकि संबल बना रहे , प्रेरणा मिलती रहे … और श्रेष्ट-सृजन के लिए
आभार !
# प्रवीण पाण्डेय जी
आपका कथन सत्य है , प्रारम्भ स्वयं से ही करना होता है
आभार
# डॉ.टी.एस.दराल जी
आपको देखते ही नई ऊर्जा का संचार होता है ।
आपके युवा मन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।
कृपा-स्नेह सदैव बनाए रखें ।
# आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी
आप-से समर्थ छंद - रचनाकार की उपस्थिति
मुझ छंद-साधक के लिए आवश्यक उत्साह का संचार करती है ।
शीघ्र ही आपकी नई पोस्ट से प्रेरणा लेने आ रहा हूं …
आभार
# आदरणीय अमरजीत जी
बहुत बहुत स्वागत ! शस्वरं को समर्थन देने के लिए भी , और अपनी बहुमूल्य राय से मेरी पोस्ट को धन्य करने के लिए भी ।
समाज की विकृतियां आप-हम मिल कर ही दूर करेंगे …
कृपया , आते रहें …
# प्रिय दीप्ति जी
आभार … आगे भी प्रतीक्षा करूंगा
शुभकामनाएं !
# आदरणीय हबीब साहब
नमन और मंग़लकामनाएं!
# आदरणीया वंदना जी
आपने पहले भी मुझे बड़ी बहन का स्नेह दिया है ,
एक बार फिर चर्चामंच पर स्थान देने के लिए आभार !
# आदरणीय शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद"जी
आपका आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है ।
उत्साहवर्द्धन के लिए आभार !
# आदरणीया वात्सल्यमयी राजेश कुमारी जी
प्रणाम !
इतनी स्नेहाशीषों के लिए आभार ! आभार ! आभार !
आपके आशीर्वाद से ही सरस्वती की कृपा मिल रही है …
आपके अगले आगमन की प्रतीक्षा रहेगी ।
# आदरणीय गिरीश पंकज जी
आपकी शुभकामनाओं के सहारे ही हर कमाल संभव है
भाईसाहब , संभालते रहा करें…
आभार !
# प्रियवर अजय कुमार जी झा
आपके एक एक शब्द ने मुझे ऊर्जा प्रदान की है भाई !
प्यार बनाए रखिएगा
आभार !
# श्रद्धेय मंसूर चचाजान
प्रणाम !
आप जैसे धुरंधर छंद सृजक , सच्चे गुणी और हुनरमंद ज़ौहरी के कहे
इतने प्रेरणाप्रद शब्दों के माध्यम से मुझे और अधिक उत्तरदायित्व से
समाजोपयोगी श्रेष्ठ सृजन के लिए प्रेरणा मिली है ।
नतमस्तक हूं …
कृपा-आशीष-स्नेह सदैव मुझ पर रहे …
आभार !
# आदरणीय अली भाईजान
शुक्रिया ! आते रहें कृपया
# प्रिय बंधुवर दीप जी 'विचार शून्य'
आपका पधारना मेरा सौभाग्य है !
आभार …
# आदरणीय मनोज जी भाईसाहब
मेरी पोस्ट को चिट्ठा चर्चा पर स्थान देने के लिए आभारी हूं …
# आदरणीय तिलकराज जी कपूर साहब
प्रणाम !
आपका कुछ भी कहना मेरे लिए बहुत अर्थ रखता है …
आभार !
# प्रिय बंधुवर राणा प्रताप सिंह जी
आभार !
# आदरणीय कैलाश शर्मा जी
प्रणाम !
आप जैसे समर्थ रचनाकार का आशीर्वाद मिलना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है ।
आभार …
# आदरणीय अमिताभ जी
आप जैसे प्रबुद्ध गुणी की प्रतिक्रिया मिलने से रचना धन्य हो जाती है , और रचनाकार गौरवान्वित ।
नतमस्तक हूं , नमन स्वीकार करें !
…और निवेदन है , अपनी परख दृष्टि से धन्य करते रहें ।
आगे और श्रेष्ठ लिखने के प्रयास करता रहूंगा ।
साभार …
# आदरणीय मा'सूम साहब
आभारी हूं आपका !
निःसंदेह , सम्मिलित प्रयासों से समाज में परिवर्तन और व्यर्थ के ढकोसलों से मुक्ति संभव है ।
ज़रूरत है , दक़्यानूसियों से हिम्मत और विवेक के सहारे उबरने की …
धन्यवाद …
# आदरणीय सुज्ञजी
आभार !
आप-हम जैसों को ही दायित्व लेना होगा … :)
# प्रिय क्षितिजा जी
आपके अमूल्य समय , श्रम और शब्दों से मेरी रचना धन्य हुई ।
आपका सद्भावपूर्ण समर्थन मेरा सौभाग्य है …
आभार !
# आदरणीया रचना दीक्षित जी
आभारी हूं प्रोत्साहन और आपकी उपस्थिति के लिए…
# स्नेहिल पारुल जी
अंतराल पश्चात आपको देख कर ख़ुशी हुई ।
आभार …
# प्रियवर केवल राम जी
स्वागत और आभार समर्थन के लिए !
निस्संदेह ! शुरुआत स्वयं से होने के बाद ही हम औरों का आह्वान कर सकने के अधिकारी बनते हैं ।
अवश्य ही आपके ब्लॉग पर आऊंगा …
# तृप्ति जी 'कोरल'
आप-हम मिल कर ही राख करेंगे रावण को …
आभार !
रावण को हम हर साल जला कर खुश होते हैं मगर अपने मन में छिपे रावण को ढंकने का प्रयत्न करते रहते हैं !
शुभकामनायें राजेंद्र जी !
बिलकुल सही कहा...शत प्रतिशत सही...
झकझोरती और सार्थक सन्देश देती हुई अतिसुन्दर रचना..
bade bhai ko pranam,,kuch likha hai,,nivedan hai pdhkar sujhaw de,,prtiksha me,,,
विजयदशमी की आपको हार्दिक मंगल कामनाएं .रावण पर अच्चा लिखा है ,प्रभावपूर्ण ।
rajendra ji
aapne bilkul yatharthta liye hue yah kavita lijhi hai,jo shat -pratishat sahi hai aur vastav me aisa hi hona bhi chahiye.main aapki baato se purntavya sahmat hun .
sach maniye mere man me bhi kuchh aisi hi vicharo ne janm liya tha aur is vishhay par lambi chrvha bhi .mrea kahna tha ki jis ravanne ye kand kiya usko to ham har saal jala dete hai ki paap par vijay ki prapti hai
par aaj jo hazarro -lakho xhdhm -vesh me ravan chhupe baithe hai ghar ho ya bahar kyon nahi unko pad pad kar jalaya ya mara jaata hai
bas itna hi kyon ki ab thak gai hoon.
aapki yah post bahut bahut hi achhi lagi.
poonam
बहुत सुन्दर और शानदार दोहे हैं! सब एक से बढ़कर एक है!
pata nahi aisee shuruat kab ho payegi......!!
nisandeh.......behtareen rachna sir!!
राजेंद्र जी प्रणाम !
बहुत सामयिक दोहे है ....परम्पराएँ वक़्त के साथ अपना स्वरुप खो अर्थहीन हो सकतीं हैं यदि इन्हें पुनः परिभाषित ना किया जाये तो..........
गत माह आपने हौसला बढाया था......एक और रचना हाज़िर है ...कृपया मार्गदर्शन करें ..
http://pradeep-splendor.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
नमस्कार राजेंद्र जी ... पिछला पूरा हफ़्ता बाहर रहा और इस लाजववाब ग़ज़ल से महरूम रहा .... पहले शेर ने ही दिल लूट लिया ... जीवन की सच्चाई को बाखूबी लिखा है आपने .... अंदर के रावण को कोई नही जलाता .... और आगे लिखे सब शेर हक़ीकत बयान कर रहे हैं .... बहुत लाजवाब ....
wah...kya likhte hai aap...badhai.
क्षमा करें राजेंद्र जी थोड़ी देर से उपस्थिति दर्ज करा पाया| पर इसमें भी मुझे मेरा ही नुकसान लगा इतनी बढ़िया रचना आज पढ़ पाया..बिल्कुल आज के समाज की सच्चाई है कितने रावण घूम रहें है एक रावण के मरने से समस्या का अंत नही होता..
आपकी रचनाएँ बेहतरीन होती है..बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..प्रणाम स्वीकारें
dohon ko adhunik roop mein aapne jeewant kar diyya hai jo prashansneeya hai. aapke dohe manoranjak hone ke saath saath naseehat bhii de gaye hain. is sundar prastuti ke liye aapko bahut badhai. Ashwani Roy
सार्थक आह्वान !
आद राजेन्द्र भईया...
साल भर पश्चात आपकी पोस्ट पुनः पढी... कितने सार्थक दोहे हैं... वाह!
"मात्र मनोरंजन करें....
सचमुच! अब यह मनोरन्जन ही है... रावन की बढ़ती ऊँचाई भी संभवतः कलुयुगी मानसिकता को परिभाषित करती प्रतीत होती है...
आपको सपरिवार विजयादशमी की सादर बधाइयां...
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