ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
हमें बात दिल की बता दीजिएगा
न ज़ख़्मों को ज़्यादा हवा दीजिएगा
अजी इस तरह मत सज़ा दीजिएगा
अगर दीजिए तो बजा दीजिएगा
यूं ग़म शौक़ से बारहा दीजिएगा
मगर रूठ कर मत सज़ा दीजिएगा
कहा मानिएगा, कहा कीजिएगा
उदासी का आंचल हटा दीजिएगा
धुआं हद से ज़्यादा जो देने लगे; वो
चराग़ अपने हाथों बुझा दीजिएगा
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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यहां सुनें मेरी धुन में मेरे शब्द मेरे स्वर में
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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11111111111
अर्थात्
11 - 1 - 11 11 : 11 : 11
अर्थात्
वर्ष ’11 के पहले महीने की 11वीं तारीख को
पूर्वाह्न के 11 बज कर कर 11 मिनट 11 सैकंड पर
डाली गई इस पोस्ट के माध्यम से
आपके लिए
11111111111 शुभकामनाएं !
और कल इस ब्लॉग की स्थापना के दस माह पूरे हुए ।
10 माह
33 पोस्ट
198 समर्थक
1515 से अधिक कमेंट
7000 से अधिक विजिट
आप सबके प्रति हार्दिक आभार !
स्नेह सहयोग सद्भाव बनाए रखिएगा
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74 टिप्पणियां:
इस खूबसूरत ग़ज़ल जिसका मक्ता मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ, के लिए दिली दाद कबूल कीजियेगा...आपकी धीर गंभीर आवाज़ में इसे सुन कर लुत्फ़ दुगना हो गया है...
नीरज
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
सुभानाल्लाह ......
उस पर आपकी ये गंभीर आवाज़ ...पंक्तियों में जान डाल देती है .....
कडाके की ठण्ड में भी पोस्ट के लिए इतनी मेहनत ...?
.इतना हिसाब किताब ....?
कितने महीने हुए ...कितने लोग आये ....कितनी पोस्ट लिखी ....?
आप तो पूरे ब्लोगिये हो गए .....
कहा मानिएगा, कहा कीजिएगा,
उदासी का आंचल हटा दीजिएगा ...
बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम है इस रचना में ...यह पंक्तियां लाजवाब ...आभार ।
कहा मानिएगा, कहा कीजिएगा,
उदासी का आंचल हटा दीजिएगा ...
wah...kya baat hai...bahot khubsurat
...
ज़माना लुटेरा, है आँसू खजाना.
@ यह बात यदि सभी के लिये सत्य है तो
किसी दूसरे के बहते आँसुओं के लिये मैं तो लुटेरा हो गया.
मुझे पूरी ग़ज़ल पसंद आयी, यह तो साहित्यिक-छेडछाड है बुरा ना मानियेगा.
धुआँ अधिक छोड़ने लगूँ तो अनुयायी लिस्ट से हटा दीजिएगा.
.
ऐसे ही लिखते रहिये और आवाज़ का जादू बिखेरते रहिये!
Harkeerat jee ke baat se sahmat...:)
isss pure blogger ko salam!! khubsurat post...pyari aawaj....aur fir itna statistics...ham to fan ho gaye..:)
बेहद खूबसूरत गज़ल उसपर आपकी आवाज़.माशाल्लाह...
बहुत सुन्दर.
आपकी आवाज गजल का मजा दौगुना कर देती है।
एक बार फिर बेहतरीन गजल
शुभकामनायें
बहुत सुन्दर.
bahut sunder sabdo ke sath
behtreen gajal
.....
mere blog par
"main"
राजेंद्र जी प्रणाम!
कहा मानिएगा, कहा कीजिएगा....
वाह वाह वाह........बहुत अच्छा....
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
वाह क्या अदांज है।
vaah....vaah....vaah....daad to isase bahut jyaadaa denaa chaahataa hun main...magar isase jyaadaa ke liye koi aur shabd ho to mujhe jald-se-jald bataayen....pleeeeeeeeeez....
vaah....vaah....vaah....daad to isase bahut jyaadaa denaa chaahataa hun main...magar isase jyaadaa ke liye koi aur shabd ho to mujhe jald-se-jald bataayen....pleeeeeeeeeez....
जमाना लुटेरा है, आँसू बचाकर रखिये।
क्या खूब कहा है....
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
खूबसूरत ग़ज़ल, दिलकश आवाज़.......
बहुत अच्छा कलाम है...बधाई.
111111111111 की भी बधाई स्वीकार कीजिए :)
बहुत सुन्दर.....!
वाह आज आपके ब्लॉग में आकर मजा आ गया
बेहतरीन........
.
एक आदमी था
उसे दिनभर खुश रहता था.
कारण था कि
जब घडी 10 :10 बजाती तो वह खुश हो आता
जब घडी 11 :11 बजाती तो वह और खुश हो जाता.
और जब घडी 12 :12 बजाती तो वह खुश होकर इधर-उधर उछलता घूमता.
इसी प्रकार जब जब घडी 1 :11 बजाती, 2 :22 बजाती, 3 :33 बजाती, 4 :44 बजाती, 5 :55 बजाती तब-तब उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता.
लेकिन जब 7 बजते तो वह दुखी हो जाता.
7 से लेकर 9 बजे तक वह दुखी रहता, आखिर क्यों ?
.
बेहद भावपूर्ण ग़ज़ल ...... सुंदर प्रस्तुति.
.
सृजन - शिखर
# प्रतुल जी , बहुत कठिन पहेली है ।
आप ही बताएं … हमने तो मानी हार
@ धुआँ अधिक छोड़ने लगूँ तो अनुयायी लिस्ट से हटा दीजिएगा
# प्रतुल जी , आप जैसे विद्वान की उपस्थिति जहां हो ,
वह ब्लॉग स्वतः ही भव्य-दिव्य प्रतीत होने लगता है ,
चाहे वह मुझ जैसे मूढ-अवगुणी का ब्लॉग ही क्यों न हो !
सदैव स्नेह बनाए रखें । शुभकामनाएं !
आनंद आ गया राजेंद्र भाई ! सरल भाषा और धाराप्रवाह आपकी विशेषता है!
शुभकामनायें !
प्रणय निवेदन -II
वाह वाह राजेन्द्र जी शानदार गजल। आपका ब्लॉग बी धुआंधार प्रगति पर है। आपकी आंसू वाली बात तो हम पहले से मान रहे हैं।
छुपा लेते हैं अश्कों को पलकों में ही कहीं
दर्द रहता है सीने में कहीं दफन
पर चेहरे पर नहीं निंशां होते
पर क्या करें कहीं न कहीं गलती होती है
आखिर इंसा ही तो है हम
गलतियों का पुतला भी कह लें
इसलिए अगर बोले दें तो हो जाते हैं बिंदास
फिर भी अश्कों को पलकों में ही छुपा लेते हैं
वाह वाह वाह वाह..अपनी पीठ थपथपा ली है राजेंद्र जी ......
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
aadarniy rajendr ji
aapki is rachna ke baare me main kya likhu,aapto itna jabardat likhte hain ki ham to aapke kalam ke kayal ho gaye hain.
bahut hi gahara prabhav chodti hai aapki har post.
aapki puri profile padhi hai maine aur kaafi prabhavit bhi hun.
ishwar se dua ki jis manjil par aap kadam badhna chahate hain us tak aap jarur pahunche aur saflta aapke kadam chumen.
dil se naman
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
poonam
aadarniy rajendr ji
bahut khoob .aapki gazal ki har panktiyan kabile tarrif hai .kisko kam kahun
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
maine aapki puri profile pdhi hai aur aapse bahut jyada prabhavit bhi hun.
naye varshh par ishwar se yahi prarthana karti hun ki aap jis manjil ki taraf kadam badhana chahte hain vo manjil aapko mile jarur.
saflta aapke kadam chumen
ज़माना लुटेरा है आंसू ख़ज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा दीजिएगा
aapki lekhni ke ham sada hi kayal rahe hain.
aabhar sahit
poonam poonam
.
कई व्यक्ति अंकों के दोहराव को देखकर प्रसन्न होते हैं.
क्योंकि ६:६६ नहीं बजते इस कारण वह ७ बजे से दुखी हो जाता.
और ना ही ७:७७ और ८:८८ ही बजते हैं. इस कारण वह ९ बजे तक दुखी रहता.
जब १० बजकर १० मिनट होते तो उसके मुख पर मुस्कान लौट आती.
तभी तो उसे मुस्कान वाला समय कहते हैं.
कुछ लोग उसे मूँछो वाला टाइम कहते हैं.
बहरहाल मैंने इस पहेली को छेडछाड के मकसद से पूछा था.
आपने ११ के महात्म्य को ग़ज़ल के साथ प्रस्तुत किया इस कारण से.
क्षमा भाव रखियेगा. छोटा हूँ आप गुस्सा होते ही ही नहीं इस कारण गुस्ताखी करता रहता हूँ.
इस कारण आपका विशेष स्नेह पा जाता हूँ. इस लोभ का संवरण [छिपाव] नहीं रख पाता.
.
# अतुलनीय प्रतुल जी,
@ मैंने इस पहेली को छेडछाड के मकसद से पूछा था
आपका सचमुच जवाब नहीं ।
गुस्ताख़ी नहीं , यह पारीवारिक भावना और स्नेह है ।
… कृपया, सदैव धन्य करते रहें … आभार !
# रोहित जी,
ओ रात के मुसाफ़िर ! कितने प्यारे हो यार !
कानपुर वाली आपकी sweetheart से कह्ता हूं कि
रोहित जैसा प्यारा इंसान बनाना ऊपरवाला भूल गया है अब …
अपनी ज़िंदगी इस बिंदास रोहित को सौंपदें , life बन जाएगी :)
…और हां,इतनी ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए ख़ुद की पीठ थपथपा कर मेरा सहयोग करने का शुक्रिया !
मुझ पर एक अलग ॠण चढ़ गया दोस्त !
bahut achchi lagi.
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
बहुत कटु पर सार्थक सत्य..हरेक पंक्ति लाज़वाब..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
# आदरणीया पूनम जी,
आपकी टिप्पणियों का हर पोस्ट पर इंतज़ार रहता है …
क्योकि आप न केवल सच्ची परख-दृष्टि रखती हैं
बल्कि ध्यान से पढ़ कर मेरी ही तरह रचनाओं पर विस्तार से बात भी करती हैं ।
… तो कृपया, स्नेह-समझ-संबंध बनाए रखें ।
… और, भगवान से मेरी सिफ़ारिश {:)} के लिए हृदय से आभारी हूं आपका ।
ईश्वर सच्चे और पवित्र भावों वाले इंसानों की अवश्य सुनता है । आपके लिए भी यही कामना है ।
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे
वो चिराग अपने हाथों बुझा दीजिये .... वाह !! .. बहुत खूब ..
ज़माना लुटेरा है आंसू खज़ाना
जहां से ये दौलत छुपा लीजिये ... कमाल!!....
आदरणीय राजेंद्र जी ... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ... और हर शेर कमाल का है ... धन्यवाद
अपने ब्लॉग पर आपको देख कर मन बहुत प्रसन्न हुआ .... उसके लिए भी बहुत बहुत धन्यवाद ....
# आदरणीय नीरज जी भाईसाहब,
आपने हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाया है …
अपनों को शुक्रिया कह कर अपनत्व का कम मूल्यांकन करने जैसा होता है …
नमन !
# हीर जी,
हा हाऽऽ … ब्लॉगिया होने लगा हूं , सही कहा ।
लेकिन असल ज़िंदगी में हिसाब-किताब सीखा ही नहीं :)
अपनी परेशानियों को भुला कर किसी और को ख़ुशियां देना कोई आपसे सीखे ।
नमन !
फिर एक बार बहुत खूबसूरत रचना और गायन ।
बधाई राजेन्द्र जी ।
आपकी ग़ज़लों , गीतों का कारवां यूँ ही बढ़ता रहे ।
टिप्पणियां पढ़कर भी आनंद आ गया भाई ।
वाह rajendr जी ,बहुत अच्छी ग़ज़ल !
बधाई !
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
khubsurat sher dad ke kavil .....
राजेंद्र जी हमारी तरफ से भी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए १११११११११११ शुभकामनायें
बहुत प्यारी ग़ज़ल है, राजेन्द्र जी।
आपकी आवाज़ सोने पे सुहागा का काम करती है।
अच्छी ग़ज़ल कही है. बधाई.
राजेन्द्र जी,
बहुत ही शानदार गज़ल है।
ब्लॉग-जगत में आपकी उपलब्धियों के लिये बधाई!!
शुभकामनाएँ!!
आदरणीय राजेन्द्र जी...
आपको सादर नमस्कार!
आपकी ये ग़ज़ल भी बहुत पसंद आई। इतनी बढ़िया ग़ज़ल के लिए आपको बधाई।
11-1-11 11=11=11
का संयोग भी पसंद आया।
आप मेरे ब्लॉग पर कुछ चुनिंदा पंक्तिया टिप्पणी के रूप में लिखकर आएँ हैं, पंक्तिया बहुत पसंद आई। आपकी टिप्पणी उत्साह बढ़ाने में पूरी तरह सफ़ल रहीं। इसके लिए भी आपका आभार।
आपके समर्थकों की संख्या 201 तक पहुँच गई है। इसके लिए ख़ास बधाई स्वीकार हो।
एक बेहतरीन अंदाज़ और आवाज़
जितनी सुंदर आवाज़ उतनी ही उम्दा ग़ज़ल.
Magar roothkar mat saza dejiyega!
Bahut sunder har misra , awaaz ki khalish ne use aur hi jeevant kar diya...
daad ke saath
बेहद भावपूर्ण ग़ज़ल ...... सुंदर प्रस्तुति.
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों बुझा दीजियेगा
बहुत ख़ूब!
हासिल ए ग़ज़ल शेर है ये
हर बार ग़ज़ल पढ़ते हुए नज़र यहीं पर अटक जाती है
वाह !
वाह!! बहुत उम्दा गज़ल!! आनन्द आ गया.
सुन्दर ग़ज़ल एवं बहुत अच्छी आवाज़|बधाई एवं शुभकामनायें|
ज़माना लुटेरा है, आंसू ख़ज़ाना|
न यूँ ही ये दौलत लुटा दीजिएगा||
- अरुण मिश्र.
आदरणीय राजेन्द्र जी ,
आपकी रचनाधर्मिता के बारे में क्या कहना |
हर रचना अपने आप में पूर्ण होती है आपकी |
पोस्ट ग़ज़ल पूरी की पूरी बहुत अच्छी है ,इसका हर शेर भारी है -दमदार है -बेहतरीन है |
आपकी आवाज़ तो चार चाँद ही लगा रही है |
ek ek shabd nishabd karta hua....
bahut bahut bahut sunder.......
सुन्दर ग़ज़ल और सुन्दर प्रस्तुति.
आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी
सादर प्रणाम
सब कुछ कह दिया है ..मेरे ब्लॉग जगत के साथियों ने ...मैं एक ही पंक्ति में कहना चाहूँगा ....नित नयी बुलादियाँ आप हासिल करें ....आपका अंदाज लाजबाब ..माफ़ी चाहूँगा देर से आने के लिए ...शुक्रिया
अच्छे सुझाव.
राजेंद्र जी बहुत-बहुत बधाई...और नई बुलंदियां हासिल करें....
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है...
मक्ता बहुत अच्छा है...
आप जैसे अच्छे लेखक को मैं कैसे ब्लॉक कर सकती हूं। मेरा कोई फॉलोअर बने या न बने, जिसकी रचना मुझे अच्छी लगती है मैं जरूर पढ़ती हूं। अच्छा लेखन पढ़ना मुझे बहुत पसंद है और आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं। ईश्वर आपको और अच्छा लिखने की प्रेरणा दे। आपकी कलम को ताकत मिले, यही दुआ है...ताकि हमें भी अच्छा पढ़ने को मिले...
# सदा जी, शुक्रिया ! आया कीजिए , कृपया !
# अनुप्रिया जी, हौसलाअफ़ज़ाई का शुक्रिया ! फिर आइएगा ।
# नीलेश जी,
आप अगर साथ देने का वादा करो , मैं यूं ही मस्त नग़मे लुटाता रहूंगा … :)
# मुकेश कुमार सिन्हा जी, आप जैसे प्यारे दोस्तों के दम से ही "पूरा ब्लॉगर" बनना संभव है ।
स्नेह हर हाल में बनाए रखें , कृपया !
# शिखा जी, आप ता'रीफ़ करदें तो मेहनत की मज़्दूरी मिलने जैसा लगता है ।
वरद हस्त बनाए रखें ।
# दीप सैनी जी, बहुत बहुत आभार ! फिर आइएगा …
# राज भाटिया जी, अब आपका स्नेह मिलने लगा है… धन्य मानता हूं स्वयं को ।
आशीर्वाद बनाए रखें ।
# दीप्ति जी, धन्यवाद ! आपके ब्लॉग पर तो आते ही रहेंगे …
परीक्षाओं में सफलता मिलने पर मिठाई खिलाने भी ज़रूर बुलाइएगा
# प्रदीप जी, बहुत बहुत शुभकामनाएं ! आभार !
# एहसास :: अमित चन्द्र जी, धन्यवाद !
# राजीव थेपड़ा जी, आपके प्यारे अंदाज़ में दी गई टिप्पणी के लिए शुक्रिया आभार !
आप तो मेरे ब्लॉग के प्रथम टिप्पणीदाता हैं । आपने दस माह पूर्व शस्वरं की पहली पोस्ट की पहली टिप्पणी में कहा था -
" गजब यार राजेन्द्र
तुमने तो कमाल कर दिया
यूँ की धोती फाड़ के रुमाल कर दिया
एक म्यान में इत्ती सारी तलवारे....??
वल्लाह रे...वल्लाह रे...वल्लाह रे !!
लेकिन यार,इतने सारे रंग एक ही साथ दिखा दोगे तो हम सब को तुमसे कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हो जायेंगी....है ना.....?? "
… तो बताते - परखते रहें … आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा हूं या नहीं ? :)
# प्रवीण पाण्डेय जी, दौलत तो बचा कर ही रखते हैं :) आभार !
# 'साहिल जी', शुक्रिया ! आपका प्यार मेरी दौलत है ।
# शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद" साहब, आपकी पारखी नज़र पाने पर मेरी लेखनी धन्य हुई ।
111111111111 की बधाई आपको भी :)
# योगेन्द्रनाथ दीक्षित जी, आपका आगमन ही भाग्योदय का प्रतीक है ।
आशीर्वाद देते रहें हमेशा … आभार !
# गौरव शर्मा जी"भारतीय", आपके आने से हमारा मज़ा द्विगुणित हो गया … प्रतीक्षा रहेगी अब … आइएगा ।
# उपेन्द्र 'उपेन जी', आभार !
# सतीश सक्सेना जी, अगर इन दिनों किसी के प्रति मेरे मन में अपराधबोध जैसा कुछ है तो वो आप हैं , या नीरज जी गोस्वामी ।
मेरे दोनों बड़े भाइयों के यहां मेरी हाज़िरी नहीं लग पा रही है । … लेकिन , विश्वास है कि आप दोनों का सस्नेह वरद हस्त मुझ पर सदैव बना रहेगा !
bahut sunder gajal hai........
rajendr ji apki awaaj gajal ke liye
bahut achhi hai...
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है.खुदा आपको जोरे कलम और ज्यादा दे.
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है राजेंद्र जी ... सभी शेर बहुत कमाल के हैं ...
आपको पढ़ कर मज़ा आ जाता है ..
# मृदुला प्रधान जी, बहुत बहुत आभार ! आपके अगले आगमन की प्रतीक्षा है ।
# कैलाश चन्द्र शर्मा जी, धन्यवाद के शब्द नहीं हैं मेरे पास । आप जैसे सरस्वती - सुत का एक एक शब्द अर्थपूर्ण होता है ।
आते रहें , कृपया !
# क्षितिजा जी, आपको एक अंतराल के बाद यहां देख कर मुझे भी हार्दिक प्रसन्नता हुई …
आपका मेल आई डी न होने से नव वर्ष की शुभकामनाएं आप तक नहीं पहुंचा पाया …
~*~आपके लिए नव वर्ष मंगलमय हो !~*~
# डॉ.दराल भाईसाहब, आपकी शुभेच्छाएं महसूस करके आपके साथ लगाव बढ़ता ही जा रहा है …
मन से दूर न करें हमें … प्रणाम !
# 'मिसिर'जी, वंदन आभार ! आपके आशीर्वाद की हमेशा आवश्यकता है मुझे …
समय निकाल कर आ'कर ऊर्जा देते रहें …
# सुनील कुमार जी, दाद के लिए शुक्रिया !
# निर्झर नीर जी, आभार ! धन्यवाद ! शुक्रिया !
# महेन्द्र वर्मा जी, … और आपकी टिप्पणी सोने को कुंदन बनाने वाली है :) कृपया, आया कीजिए …
# देवेन्द्र गौतम जी, स्वागत ! आपका आना प्रसन्नतावर्द्धक है , आगे भी प्रतीक्षा रहेगी ।
# सुज्ञ जी,धन्यवाद !
ब्लॉग-जगत में मेरी उपलब्धियां आप जैसे शुभचिंतकों - मित्रों के कारण ही हैं । आभारी हूं …
# विरेन्द्र सिंह चौहान जी, प्रशंसा और बधाई के लिए क्या कहूं मित्र !
आभार … ! उपलब्धि की प्रसन्नता अपनों के समर्थन - सहयोग से द्विगुणित हो जाती है ।
# डिम्पल माहेश्वरी जी, जय श्री कृष्ण ! स्वागत ! आप पहली बार आई हैं न … अब आती रहिएगा ।
जैसा हूं , हाज़िर हूं …
# एस.एम.मासूम जी, शुक्रिया !
# भूषण जी, प्रणाम ! आशीर्वाद देते रहें …
# देवी नांगरानी जी, साक्षात् ग़ज़ल की देवी का आशीर्वाद मिलना मेरा सौभाग्य है ।
स्नेह-कृपा बनाए रखें ।
# संजय भास्कर जी, धन्यवाद ! दो दो कमेंट के कष्ट के लिए …
# इस्मत ज़ैदी जी, आपकी प्रतिक्रिया पोस्ट का उपहार होती है ।
और आपके कहे शब्द भावी सृजन के लिए मार्गदर्शन … स्नेह हेतु आभार !
# समीर जी, आभार ! … और पुत्र रत्न के विवाह की हार्दिक बधाइयां और मंगलकामनाएं !
# अरुण मिश्र जी, स्नेह-कृपा बनाए रखें । आप जैसे गुणी के स्वागत में पलकें बिछी रहती हैं मेरी …
# सुरेन्द्र सिंह जी"झंझट", आभार ! आभार ! आभार !
आप जैसे छंद के समर्थ रचनाकार की प्रतिक्रिया भी इनाम से कम नहीं है ।
# CS देवेन्द्र K शर्मा जी, बहुत बहुत बहुत आभार !
# PN सुब्रमणियन जी, स्वागत ! आपका आना बहुत अच्छा लगा । फिर आइएगा …
# केवल राम जी, देर-सवेर प्रियजन की शुभेच्छाएं मिलने पर महत्व कम नहीं हो जाता ।
आभार मानता हूं …
# राहुल सिंह जी, प्रणाम !
# वीणा जी, इतना स्नेह , इतना अपनत्व पा'कर धन्य हो गया हूं । कृपया, स्वास्थ्य का ध्यान रखा करें …
बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं !
# सुमन जी, शुक्रिया ! समय निकाल कर फिर अवश्य आएं आशीर्वाद देने …
# sagebob, स्वागत है आपका , पहली बार आए हैं । समर्थन के लिए भी आभार ! पुनः आइएगा …
हां, आपका नाम … ?
# दिगम्बर नासवा जी, शुक्रिया ! आपके आगमन के लिए हमेशा आंखें लगी रहती हैं :)
धुंआ हद से ज्यादा जो देने लगे ,वो
चिराग अपने हाथों से बुझा दीजियेगा
देर बाद सुन पाई लेकिन पोस्ट सहेज कर रखी थी । रचना जितनी खूबसूरत है गायन उससे भी अधिक दिल को छूता है। बधाई आपको।
hamesha jarur ayengi apke blog par.kaya apki shikayet dur ho gai hai?
# आदरणीया निर्मला कपिला जी, प्रणाम ! आपके आने से पोस्ट जैसे पूर्ण हो गई …
आपके आशीर्वाद की हर पोस्ट पर हमेशा ज़रूरत रहेगी । वरद हस्त मेरे सिर पर रखिएगा …
# आदरणीया सुमन जी, प्रणाम !
आशा है, अगली पोस्ट्स पर भी मुझे आपका स्नेह-सान्निध्य मिलता रहेगा । आभारी हूं
वाह वाह वाह...लाजवाब !!!
राजेन्द्रजी ,ससुराल ' कोटा ' होने के कारण हम भी ' रजिस्थानी ' हुए --आपकी साधारण बोली दिल को छू गई --कविता बहुत ही अच्छी लिखी है --मिलते रहेगे ---
# रंजना जी, आपके अपनत्व का ॠणी हो गया हूं …
# दर्शन कौर धनोए जी, स्वागत और आभार ! इस नाते तो आप-हम भाभी-देवर हैं :) … ज़रूर मिलते रहेंगे परजाईजी !
राजेन्द्र भैया इस सुन्दर, दिलकश ग़ज़ल को आपके गंभीर स्वर में सुनना अलग ही अनुभव है... सादर.
धुंए को धुंआ करना, स्वयं को सामने लाना है।
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