तुम जीवन की
नव तरुणाई हो,
और ... मैं ढलता यौवन हूं !
तुम ऊगते
सूरज की लाली ,
मैं संध्या का धुंधलापन हूं !
तुम कुहुक
मधुर कोयल की ,
पपीहे प्यासे का
मैं क्रंदन हूं !
तुम खिलती
फलती मोहक बगिया ,
मैं सूखा सुलगा वन हूं !
तुम मधुर
रागिनी वीणा की ,
मैं टूटे तार की झन झन हूं !
तुम रुत
बासंती रस भीनी ,
मैं आंसू झरता सावन हूं !
तुम जलते
दीपक की ज्योति
और ... मैं अंधियारा गहन घन हूं !
तुम चपला
चंचल हृदया हो ,
मैं व्यथित दुखित आहत मन हूं !
तुम सृजनहार की सुंदर रचना ,
और ... मैं अप्रिय अंकन हूं !
तुम रूपवती
शृंगार निधि हो ,
और ... मैं टूटा दर्पण हूं !
सौभाग्यवती
तुम सर्वप्रिया ,
दुर्भाग्य का मैं
आलिंगन हूं !
नहीं संभव
अपना मिलन कभी ;
तुम देवी हो ... मैं मानव हूं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
©copyright by : Rajendra Swarnkar
सुनिए , यही गीत
मेरे शब्द , मेरी
धुन , मेरे स्वर में
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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68 टिप्पणियां:
यह टिप्पणी लिखते हुए आपके मधुर स्वर से अभिभूत हो रहा हूँ. क्या बात है. मंच पर यह श्रोताओं को कील देने में सक्षम है. वाह !!!
मधुर भाव के साथ सुन्दर शब्द चयन...मनोहारी प्रस्तुति...धन्यवाद...
Ho bhi gaya mail apna to blolo milan kahan par hoga...
Neeraj ji ki yaad dilati hai ye rachna... Behtar aur prabhavshali tareeke se bhaavon ki abhvyakti hai is kavita mein
Aakarshan
राजेंद्र जी,
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं. आपका मधुर स्वर के 'सोने पे सुहागा' का काम कर रहा है.
पढ़ कर हृदय आनन्द के अतिरेक में चला गया।
बहुत सुन्दर गीत ..
हास्य कहूँ या हीन-भाव कुछ कहने में असमर्थ हुआ, बस इतना ही कहता हूँ तू प्रस्तुति में ग़जब समर्थ हुआ।...बहुत-बहुत शुभकामना
खुबसूरत भावो और एहसासों के साथ रची रचना....
क्या शब्द क्या स्वर और क्या रंग - आपका जवाब नहीं सर जी| आनंद आ गया| आज फिर से सुन रहा हूँ वो वाली ग़ज़ल|
aapke swar me rachna ke ek ek bhaw aur mukhrit ho uthe
बहुत ही अच्छा लगा आपको पढकर....
एक परिवेश प्रेम स्तुति का अपने को "कबीरा कुछ न बन जाना तजके मान गुमान "वाला अंदाज़ और स्वर भाव संसिक्त .क्या कहना है स्वर्ण - कारजी आपका .बहुत खूब .कृपया यहाँ भी पधारें .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय ||
बधाई स्वीकार करें ||
kya kahun shabd kam pad rahe hain prashansa ke liye.
bhaut khubsurat rachna...
Aanand ki fuhar barsaati madhur rachana...jee shukriya
मधुर भाव...सुन्दर शब्द...मनोहारी प्रस्तुति...धन्यवाद...
आपकी इस बेहतरीन प्रस्तुति ने तो नि:शब्द कर दिया ...आभार ।
अत्यंत भावपूर्ण मनोहारी रचना, शुभकामनाएं.
रामराम
एक सुन्दर रचना. जिसमें स्त्री को अस्तित्व को सराहा गया है. अबिनंदन.
बहुत ही खुबसूरत रचना..
नारी को देवी का दर्ज़ा देना तो बहुत अच्छा लगा । लेकिन मानव होना भी अपने आप में कहाँ कम है ।
गायन में सारी श्रद्धा उंडेल दी है ।
अति सुन्दर ।
aapki awaj aapki rag ,aapka geet kis kis ke bare me likhun.sabhi kamal ek insan me itni pratibha kam hi milti hai .
bahut hi anand may geet
badhai
rachana
यह तो कालजयी रचना है आपकी!
गीत कभी पुराना नहीं होता है!
--
चौमासे में श्याम घटा जब आसमान पर छाती है।
आजादी के उत्सव की वो मुझको याद दिलाती है।।....
ओह .....यहां तो रसवर्षा हो रही है....
शब्द-शब्द राग और रस से भरे इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
चित्र भी चित्ताकर्षक.....
हे स्वर्ण कार ! तुम सोना हो ,
भाव जगत के नंदन हो /
सुमधुर गायन के गौरव हो .
उपवन में जैसे चन्दन हो /
बहुत सुन्दर गीत ,प्रेम और समर्पण से ओतप्रोत ! बहुत बधाई आपको राजेन्द्र जी !
सर ,बहुत ही शानदार और लाजबाब प्रस्तुति ,लिखने को शब्द नहीं हैं आपने तो सब कुछ कह डाला है ....आभार
बेहद खूबसूरत गीत । जितनी सुंदर कविता उतना ही मधुर गायन । आपकी आवाज के तो क्या कहने कितनी गहराई है इसमें ।
और हां, चित्रों के बारे में कहना तो भूल ही गई । बहुत ही सुंदर और कविता के भाव के साथ जाते हुए चित्र .
भईया, शुभ प्रभात...
सुबह सुबह ऐसा सुन्दर गीत सुनना....
इससे अच्छी शुरुआत सुबह की और क्या हो सकती है...
सादर बधाई और आभार...
main to chitr dekhti rah gayi rajendra ji ,
kabhi sunne ka waqt nahin mila ,
bahut sunder hi hoga
आज के वेदना और मुश्किलों के बोझ पिघलते मानव जीवन में, ठंडी वयार और शीतलता को प्रदान करने वाली नारी का विश्लेषण अपने बड़ी ही सहजता से किया है.
साधुवाद.
आनन्द विश्वास.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय
बहुत सुन्दर गीत
link http//sarapyar.blogspot.com//
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है , कृपया पधारें
चर्चा मंच
वाह गज़ब के भावों को पिरोया है।
bahut hi sundar prastutikaran...sumadhur awaz...wah
bahut sundar madhur manohari bolti rachna..
Haardik shubhkamna!
बहुत सुंदर शब्दों में लिखी दिल को छूनेवाली शानदार रचना /बधाई स्वीकार करें /
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई स्वीकारें.
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
क्या खूब राजेंद्र जी ..
देरी से आने के लिये क्षमा .
लेकिन आना सार्थक हुआ .. क्या लिखा है .. लग रहा है कि मेरे लिये ही लिखा हुआ है ..
आप तो बस आप हो ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
राजेन्द्र जी मंत्रमुग्ध कर दिया आपने..बहुत लाजवाब रचना और गीत..
आभार.
हे स्वर्ण कार ! तुम सोना हो ,
भाव जगत के नंदन हो /
सुमधुर गायन के गौरव हो .
उपवन में जैसे चन्दन हो ...
अब इससे ज्यादा तारीफ क्या हो सकती है ....
:))
और ये आपकी आवाज़ ......
उफ्फ्फ........
वक़्त ने आपके साथ बहुत नाइंसाफी की आपको तो कहीं और होना चाहिए था .....
हाँ इस बार डूब कर गाया जो पिछली बार कमी लगी थी ...
आपकी आवाज़ का दर्द आकर्षित करता है ....
mann vibhor ho gya ......aapki aawaj me sunna achchha lga...
Dear Rajendra ji...
What a beautiful poem you write!
Really amazing creation. Nice to read you (your poems, your GAZALs..You're just amazing)
I congratulate you.
तुम 'देवी' मैं मानव .....
उफ्फ....
अर्धांगिनी को सम्मान देना तो कोई आपसे सीखे ...
पत्नी अपने पति से जरा सा सम्मान पा सारे दर्द भूल जाती है ....
खुशनसीब है वो .....
ek khoobsurat rachna ko achha swar pradaan kiya hai. aapko badhai. saath hi tasveer bhi sunder lagai hai, stri ke sunder roopon ki.
achhi lagi sampoorna kriti, swar..
shubhkamnayen
ek khoobsurat rachna ko achha swar pradaan kiya hai. aapko badhai. saath hi tasveer bhi sunder lagai hai, stri ke sunder roopon ki.
achhi lagi sampoorna kriti, swar..
shubhkamnayen
aapki rachna padhkar man me aadar bhav jaag utha ,swar ne ise aur nikhar diya .uttam .vichar to dev tulya hai aapke .
samvednaaon se labaalab bhara hua sagar jaisa blog... aisa mujhe laga. bahut sunder.....
sunder kriti
par khud se itna aprem kyun?
abhaar
Naaz
डा. रमा द्विवेदी
आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी ,
आपका सस्वर गीत सुना.... अति सुन्दर शब्द और धुन ....अभिभूत हूं सुनकर | बहुत सराहनीय कार्य किया है आपने गीत के साथ सुन्दर सुन्दरियों के चित्र डाल कर ...मन मोहित हो गया | सुन्दर गीत के लिए अनंत शुभकामनाएं .....
komal si ..bahut sunder rachna ...
badhai evam shubhkamnayen.
Your blog is like a treasure. Loved visiting it:)
ati sundar..! Aabhaar!
rajendra ji aap lagta hai aaj kal bahut vyast rahne lage hain jo humare blog ki yaad hi nahi aati.
अति सुन्दर!
सुंदर सरल शब्दों में बंधा गीत अच्छा लगा.
आप के स्वर में गीत को सुनना सुखद रहा.
चित्र चयन लाजवाब.सभी चित्रों में नायिका की आँखें बोलती हैं.चित्रकार का नाम क्या है?
आभार.
madhur kavita...madhur chitra...
utsahwardhan ke liye bahut bahut dhanywad sir....
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
कभी मेरे ब्लॉग पर भी आएं |
आशा
अपनी अभिव्यक्ति में कामयाब बेहद खूबसूरत गीत के लिए बधाई राजेंद्र भाई !!
'तुम देवी हो......... मैं मानव हूँ '
भाई राजेन्द्र जी
सप्रेम अभिवादन
आपका प्यारा गीत पढ़कर आनंद आ गया और सुनकर तो क्या कहना...
आप कलम और कला के धनी रचनाकार हैं , बहुत ख़ुशी होती है ब्लॉग पर आपसे रूबरू होकर ...
ख़ूबसूरत चित्रों से सुसज्जित लाजवाब और मधुर गीत लिखा है आपने ! अनुपम प्रस्तुती !
राखी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!
कोमल अहसासों का सजीव चित्रण...भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन...लाज़वाब प्रस्तुति..
बहुत सुन्दर गीत .....
यह गीत आपके ह्रदय के अनछुए भावो का प्रदर्शन है एवं आपकी आवाज सरस्वती का वरदान है
विद्या बुद्धिका अनूठा संगम जिसकी तारीफ शब्दों में नहीं की जा सकती
मधु त्रिपाठी MM
tripathi873@gmail.com
http://kavyachitra.blogspot.com
लाजवाब
और फिर आपका सुमधुर स्वर क्या कहने
अनूठा
सुंदर चित्रों के संयोजन ने तो प्रस्तुति में चार चांद लगा दिए हैं राजेंद्र जी । आपको पढना कहीं भीतर अपने दिल को टटोलने जैसा अहसास कराता है । बहुत खूब , बहुत ही बढिया
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