फेसबुक पर एक जगह कुछ समय से तमाम ग़ज़लकारों को
एक चुनौती-सी है - बह्रे हज़ज के एक रूप पर आधारित ग़ज़ल लिखने के लिए ,जिसका वज़्न है
मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन
अर्थात्
1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2
पता नहीं, क्यों इस बह्र को मुश्किल माना गया होगा ?
एक चुनौती-सी है - बह्रे हज़ज के एक रूप पर आधारित ग़ज़ल लिखने के लिए ,जिसका वज़्न है
मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन
अर्थात्
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पता नहीं, क्यों इस बह्र को मुश्किल माना गया होगा ?
मां सरस्वती की कृपा से मैंने इस बह्र में
ज़्यादा नहीं, कोई 12 ग़ज़लियात ज़रूर कही हैं । इस 'चैलेंज' और वहां छाये सन्नाटे के बीच भी पांच नई ग़ज़लें/मुसलसल ग़ज़लें
इस वज़्न को ले’कर कही हैं । 1 जनवरी
को गिरीश
पंकज जी बीकानेर पधारे थे, उन्हें
तरन्नुम के साथ पांच ग़ज़लें मित्र मंडली के बीच सुनाई थीं । उन्हें जो ग़ज़ल नहीं
सुनाई, वह यहां प्रस्तुत कर रहा हूं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य , है हंसी प्रहेलिका !
बला की सुंदरी हो तुम कुमारिका ! ऐ बालिका !
कभी लगो उमा , कभी रमा , कभी हो राधिका
घना , बिहारी , जायसी की तुम प्रत्यक्ष नायिका !
जगर-मगर है तन तुम्हारा जैसे दीपमालिका
तुम्हारे नाम निशि-दिवस लिखे हैं गीत-गीतिका
रहे हमारे मध्य क्यों अदृश्य कोई यवनिका ?
है केश ज्यों गहन अमा , या
नागिनों की टोलियां
विशाल भाल है सुघड़ , रुचिर-उत्थित्त
नासिका !
बड़े नयन हसीन जैसे नीलवर्ण सीपियां
अदाएं इंद्रजाल हैं , तो
शोख़ियां कमाल हैं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य , है हंसी
प्रहेलिका !
विद्युति-सी तुम ; मृगी-सी , हस्तिनी-सी , पद्मिनी तुम्ही
तुम्हीं हो तुम , जहां हो
तुम , वहां न दूसरा कोई
हो मध्य तुम तमाम तारिकाओं के निहारिका !
लहर , तड़ित न बाहुपाश में जकड़ सका
कोई
है धन्य धन्य वो , बनी हो
जिसकी अंकशायिका !
राजेन्द्र मिलती कोमलांगी-कामिनी तो पुण्य से
न पुण्य हों किए ; लगे ये
स्वप्नवत् मरीचिका !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं से जुडने और मुझे आशीर्वाद
प्रदान करने वाले सभी नये मित्रों के प्रति
हृदय से आभार !
क्षमाप्रार्थी हूं , सक्रिय नहीं
रह पा रहा हूं दिसंबर के पहले सप्ताह के बाद से ।
कहीं नहीं पहुंच पा रहा हूं । लगभग
सब जगह ग़ैरहाज़िरी लग रही है ।
अभी यह स्थिति बनी रहने की संभावना
है कुछ और समय तक ।
आप अपने स्नेह में कमी न करें
लेकिन… आते रहें कृपया !
साहित्यिक समारोहों और कवि सम्मेलनों
में भी व्यस्तता बढ़ी है
कुछ अन्य कारण भी हैं
और हां, रक्षक फाउंडेशन, अमेरिका द्वारा आयोजित गौरव-गाथा
काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कार स्वरूप 10,000 रुपये का चेक मिला है ।
शुभकामनाओं सहित
73 टिप्पणियां:
अदाएं इंद्रजाल हैं, तो शोखियाँ कमाल हैं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य, हैं हंसी प्रहेलिका!
सुंदर चित्रों से सुसज्जित लाज़बाब प्रस्तुति.
एक ही शब्द है- लाजवाब !
bahot khoob janaab, kamaal hi kar diya aap ne, behtareen ghazal likhi hai
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें राजेन्द्र जी!
लाज़वाब प्रस्तुति...आपकी हरेक पेशकश लाज़वाब रही है..कई बार अपने आप को कुछ कहने को असमर्थ महसूस करता हूँ. शुभकामनायें.
अद्भुत... अप्रतिम...आप जैसे काव्य-साधकों के लिए कुछ भी कठिन नहीं. मेरा सौभाग्य है कि ये कविताएँ मैं बीकानेर में आपके श्रीमुख से सुन चुकाथा और बादाम-पिस्ता, केसर युक्त मूंग का हलवा भी खाया था. आज उन कविताओं को फिर पढ़ कर आनंद की अनुभूति हुई. अद्भुत प्रवाह और छान्दसिकता, रसिकता है इन रचनाओं में. मैं नहीं सोचता कि ऐसा कोई इस समय लिख सकता है. हो सकता है एक-दो लोग हों. कम से कम इस स्टार की बड़ी रचनाएं कर पाने में खुद को असफल मानता हूँ. आपने चुनौती स्वीकार की, इसी तरह साहित्य-साधना में रत रहे, यही शुभकामना है..
वाह! अद्भुत! अद्वितीय! अनुपम...गौरव गाथा की ओर से पुरस्कार के लिए बधाई!
भाई जी आप जैसे सिद्ध हस्त कवि शायर को क्या खा के चुनौती देगा ? अगर कोई देने की गुस्ताखी करेगा तो भी वो मुंह की ही खायेगा...आपने जो ग़ज़ल कही है वो अतुलनीय है...भाव और शब्दों का ऐसा विस्मयकारी संयोजन अन्यत्र देखना दुर्लभ है...आपने सुंदरी के रूप की जिस विस्तार से चर्चा की है वो किसी एक स्त्री में मिलना असंभव है...अगर कहीं किसी एक में आपकी गिनाई खूबियों में से एक भी उपलब्बध हो जाये तो जीवन धन्य समझें.
नीरज
अह ! मधुलिप्त अधरों की छुअन से अलकों के पटल पर कुछ मुग्धकारी यदि उकेरा जाय तो, अवश्य ही, कुछ इसी तरह का लावण्यपगा, शृंगारशोभित, अप्रतीम-सा विस्तार पायेगा !
यदि सुकवि इस क्लिष्ट वायव्य को गर्व-प्रयास से बलात् हरित न कर दे, ऐसा हो सकता है भला ?!! और, हठात् क्रिया-सम्पन्नता उन्माद-उद्घोष कर उठती है -
कभी लगो उमा, कभी रमा, कभी हो राधिका
घना, बिहारी, जायसी की तुम प्रत्यक्ष नायिका !!
वाह ! .. वाह !!
राजन, तुम उछाह हो ! राजन, तुम उत्साह हो !!
क्लिष्ट दीखती दिशा में एक सुगढ़ प्रवाह हो !!
गौरव-गाथा काव्य प्रतियोगिता की सफलता पर हार्दिक बधाइयाँ.. .
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--
Alam Khursheed
Namaskar Bhai!
Aap itni achhi ghazlen kahte hain ....aur behr ki perfectness ke saath...phir aap ko in sab shortcut ki kya zaroorat hai. Kisi khoobsurat mahila ke sahare ki qatai zaroorat nahin. Aap bhi aisa hi karenge to aap men aur un chhutbhaiyon men kya farq rah jayega?
Apne aap par wishwas rakhen....aur likhte rahen....main bahot khush hua aapke ashaar padhkar..........Aap ko kisi group wroup ki bhi zaroorat nahin hai.....chunkar achhe logon ko jo ghazal samajhte hon apna dost banayen..........aur share karen.
meri tamam shubh kaamnayen aap ke sath hain.
बड़ी मुश्किल से खुला है ब्लॉग .
सबसे पहले तो बधाई स्वीकारें भाई जी .
ग़ज़ल की तो क्या कहें -- दीवाना सा बना दिया है , ग़ज़ल की खूबसूरतियों ने .
खूबसूरती लफ़्ज़ों की , तस्वीरों की , भावों की और प्रस्तुति की .
लाज़वाब !
बहुत ही प्रभावित करता व् शब्दों के माला में सुसज्जित रचना ......
भाई राजेंद्र जी,इतनी सुन्दर रचना के लिए आपको बार-बार बधाई .गौरव गाथा पुरस्कार के किए भी बधाई.
अदाएं इंद्रजाल हैं, तो शोखियाँ कमाल हैं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य, हैं हंसी प्रहेलिका!
सुंदर चित्रों से लाज़बाब प्रस्तुति,दीवाना बना दिया
नमन करता हूँ आप की प्रतिभा को,माँ सरस्वती का ये वरदान हरेक को नहीं मिलता,आप अद्वितीय है
नमन करता हूँ आप की प्रतिभा को,माँ सरस्वती का ये वरदान हरेक को नहीं मिलता,आप अद्वितीय है
वाह !!! राजेंद्र जी,कमाल का छंद कमाल की कविता,कमाल के शब्द और कमाल की सरिता.
जिसके रूप का वर्णन किया गया है वह स्वयम् भी इतनी सुंदरता प्राप्य न होगी.वैसे भी सुंदरता आँखों में होती है.जब आँखें आकुल होती हैं तो वासंती श्रृंगार भी लुभा नहीं पाता.ये आँखें देह-यष्टि पर विद्यमान भी नहीं होती.अंतर्मन से देखे हुए इस सौंदर्य में आपकी आँखों का सौंदर्य स्पष्ट परिलक्षित है.भई इतना ही कहूंगा कि तृप्त कर दिया.
बेहतरीन प्रस्तुति !
पुरस्कार के लिये बधाई !
ऐसी शब्दावली तो अब अपवादस्वरूप ही देखने/पढने को मिलती है। बहुत अच्छा लगा। निर्दोष वर्तनी सराहनीय, प्रेरक और अनुकरणीय है।
नीरज जी और गिरीश जी ने सच कह है ... चुनौती और वो भी आपको ... राजेन्द्र जी ऐसा संभव नहीं है की आप कुछ लिखना चाहे और वो न बन सके... बहुत ही मधुर ... अप्रतिम रचना है ... जितना पढों उतना आनद बढ़ता जाता है ...
" कुमार सम्भव" से राजेन्द्र कुमार तक !! वाह !! यह तो कालिदास से ले कर चित्रपट की नायिका तक की बहुत मोहक तस्वीर है -- अप्रतिम और विलक्षण राजेन्द्र जी !! नितांत मौलिक और काव्य - कला के सम्पूर्ण गुणो से सुसज्जित !! ऐसी रचना शायद किसी और के बूते के बात नहीं !! बहुत बहुत बधाई !!!
बहुत सुन्दर...। पुरस्कार प्राप्ति पर मेरी बधाई स्वीकारें...।
प्रियंका
बहुत सुन्दर...। पुरस्कार प्राप्ति पर मेरी बधाई स्वीकारें...।
प्रियंका
नारी के रूप सौंदर्य का बहुत मधुर और मादक चित्रण किया है इन पंक्तियों में .
पुरस्कार हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
बहुत सुन्दर नज्म ...पुरस्कार के लिए बहुत बहुत बधाई ...
बहुत खूब. बधाई. करतलध्वनि
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सुंदर रचना।
लाजवाब प्रस्तुतिकरण।
बेहद रवानी है इस ग़ज़ल में ,,,अति सुंदर शिल्प के साथ साथ शब्दों का चयन भी बढ़िया है जो आप की इस कला में निपुणता का द्योतक है ,, धन्यवाद और
बधाई !!
nari ka roop varnan karti bahut sunder kriti, klisht shabdon ka prayog badi sunderta se kiya gaya.
shubhkamnayen
अदभुत.....अदभुत....अदभुत\....
शायद ही किसी ने इतनी अदभुत उपमाओं और अलंकारों के साथ नारी के रूप,गुण और ढंग को इतनी सुसज्जित भाषा में वर्णित किया होगा.....!!
राजेन्द्र जी....
आप अपने नाम के स्वरुप ही रचना सौष्ठव के भी स्वर्णकार हैं....!!
आपकी लेखनी को नमन......!!!
बेहद उम्दा प्रस्तुति …………पुरस्कार के लिये बधाई !
सबकुछ लाजवाब है...गजलें..तस्वीरें..प्रस्तुति...मन प्रसन्न हो गया!
बहुत सुन्दर... बहुत बहुत बधाई..
अदाएं इंद्रजाल हैं, तो शोखियाँ कमाल हैं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य, हैं हंसी प्रहेलिका!
कोई विशेषण बचा है ? बहुत सुन्दर रचना ...
पुरस्कार के लिए बधाई
kamaal ki rachna hai.bejod roop ki prashansa ho to eyse....maja aa gaya padhkar.kai din se tumhara blog khul nahi paa raha tha g,mail ke through jaane ki koshish ki. aaj bhi mushkil se khula pata nahi kya problem hai.
shubhkamnayen.
khubsurat rachna..
sundar chitra
aur 10000/- ka cheque ..
party to banti hai hujur:))
राजेन्द्र जी आपकी रचना बहुत सशक्त है |
मेरी बधाई स्वीकारें |
आशा
behtarin...badhai apko..apki kalam aur soch mein ma saraswati ka ashirvad yo hi bana rahe.......
बहर कठिन नहीं मगर, किया है आपने कमाल
बहुत सरल से ढंग में, बिछा दिया है शब्द जाल
राजेन्द्र जी बेपनाह सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई
ग़ज़ल देखें कि ग़ज़ल में बैठी सुंदरी को.....???
दोनों से नज़रें नहीं हटतीं.....:))
sundar gajal.
puraskar prapti ke liye badhayi...
नमस्कार राजेंद्र जी
बहुत दिनों के बाद आपकी पोस्ट तक पहुच पाए .........इंद्रजाल बहुत खुबसूरत लगा .....साथ ही आपको बधाई पुरस्कार मिलने की .आपके ब्लॉग पर आना सुखद ही होता है ..........:)
http://sapne-shashi.blogspot.com
साहित्य के विस्तृत क्षेत्र में अनेकों-अनेकों महानुभाव
अपनी-अपनी योग्यता और क्षमता अनुसार
काव्य सृजन कर रहे हैं ...
किसी भी रचना का उत्कृष्ट होना, रचनाकार का सिद्ध-हस्त होना नहीं
बल्कि उस रचना को पढने , सुनने , समझने वालों का आनंदित होना ही है
मान्यवर राजेन्द्र स्वर्णकार एक श्रेष्ठ, अनूठे और सारगर्भित व्यक्तित्व का नाम है
आज, मेरे इस कथन का अनुमोदन हर वो कथाकार, लेखक, कवि, समीक्षक और आलोचक
कर रहा होगा जो राजेन्द्र जी की इस अनुपम ग़ज़ल को पढ़ कर आनंदित हुआ होगा
कोई-कोई काव्य-रचना, मात्र इसलिए नि:शब्द होकर पढ़ ली जाती है
क्योंकि पाठक को उसे सराहने और रेखांकित करने के लिए
उपर्युक्त और पर्याप्त शब्दावली नहीं मिल पाती
इस अनूठी , अनुपम और औलोकिक ग़ज़ल को पढ़ते समय
मैं, 'दानिश' होते हुए भी स्वयं को अधूरेपन से भरा हुआ पा रहा हूँ
क्योंकि,, ना मैं जानूँ आरती बंधन, ना पूजा की रीत.....
सभी-सभी टिप्पणियों से सहमत होते हुए
"स्वर्णकार" जी को अभिवादन कहता हूँ ... !
आदरणीय दादा गुरू श्री सादर प्रणाम !
सर्वप्रथम तो बधाई गौरव गाथा काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कृत होने के लिए !..यद्यपि आप हमारे गौरव हैं और किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं है ..अब गज़ल कि बात ...
तुम्ही हो तुम जहाँ हो तुम वहाँ न दूसरा कोई
हो मध्य तुम तमाम तारिकाओं के निहारिका !
लहर, तड़ित, न बाहुपाश में जकड सका कोई
है धन्य-धन्य वो बनी हो जिसकी अंकशायिका !
दादा इस काव्य धारा पर कोई टिप्पड़ी करना उचित होगा क्या मेरे लिए ...
अनुपम प्रेम रस में सराबोर इन पंक्तियों (शेर)की कोई तुलना है क्या !!
दादा एक रसिक शिरोमणि का नया पुरस्कार क्यों न शुरू किया जाये .....
हा हा हा हा हा हा
सादर प्रणाम !!
(इसे डिलीट कर देना दा)
बहुत सुन्दर!
पुरस्कार के लिए बहुत बहुत बधाई:)
अति सुन्दर नख-शिख वर्णन है
और कमाल ये दो अंतिम शब्द कि सुन्दरता ‘स्वप्नवत मरीचिका’ है,
पाप-पुण्य की परिभाषा तो हम दुनियावी लोग मन को मनाने के लिए मान ही लेते हैं.
भाई साहब हम और आप तो दुनियावी हैं लेकिन यह ज़िक्र और फ़िक्र आसमानी है,
जिसे आपकी सशक्त लेखनी ने कल्पनातीत लहजे में काग़ज़ और पढ़ने वालों के दिल और दिमाग़ पर उतारा है. बधाई
aur badhaaee puraskaar ke liye bhee.
तत्सम शब्दों से सुसज्जित इस ग़ज़ल ने सिद्ध कर दिया कि चुनौतियां आपके आगे पानी भरती हैं।
रचना में प्रयुक्त शब्द, स्वर और रंग ने शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कर दी है।
अनुपम है आपका सृजन।
पुरस्कार प्राप्ति के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
Congratulations
!!
Congratulations
अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहा जाए कि यह ग़ज़ल कई रीतिकालीन रचनाओं को मात देती है. जितनी प्रशंसा की जाए कम है. पुरस्कार के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई राजेंद्र जी.
ग़ज़ल लेखन और उसकी बारीकियां समझना मेरी समझ से परे है, पढना और सुनना बहुत अच्छा लगता है. बहुत उम्दा लिखा है आपने, दाद स्वीकारें.
बधाई हो!
बहुत सुन्दर रचना!
--
गणतन्त्र दिवस की पूर्व वेला पर हार्दिक शुभकामनाएंँ!
बेहद उम्दा अनुपम सृजन
पुरस्कार प्राप्ति के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
फोटो ने इन रचनाओं की खूबसूरती में चार चांद लगा दिया है!
सुन्दर रचनाए...सुदर तस्वीरें...बहुत अच्छी अनूभूति!
मेरे पोस्ट पर नजर डालें!
http://arunakapoor.blogspot.com/2012/01/love-adventure-miracle.html
उर्दू छंद-शास्त्र में इसे चुनौतीपूर्ण माना जाना अकारण नहीं होगा।
मैं छंदशास्त्र का ज्ञाता तो नहीं लेकिन भगवान शिव की स्तुति में ऐसे ही एक छन्द का संदर्भ आया है जिसमें लघु-गुरु का वर्ण वृत चलता है।
अब छंद के प्रवाह पर एक बार मन सध गया सो संध गया, फिर आप तो स्वयं धुन बनाने से लेकर गायन तक में माहिर हैं तो बेचारी बह्र को समर्पण के अतिरिक्त और क्या मार्ग दिखता।
बहुत-बहुत बधाइ।
इसी प्रकार मॉं सरस्वती के चरणों में बनें रहें।
भाई राजेन्द्र!
कमाल करते हो सोने को तो रुप देते ही होगे, शब्दों के गहने, जो माँ सरस्वती को भायें, खूब गढते हो। दिल से शुभकामना!
आपको भला कौन चैलेंज कर सकता है...बहुत कमाल. पुरुस्कार जीतने की बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ.
कमाल की रचना बस उचित शब्द नहीं मिल रहैं है प्रतिक्रिय करने के लिये.......
क्या यही गणतंत्र है
bahut sundar :)
कसम से मित्रवर कोई संगिनी होती तो ये कविता उसे सस्वर सुनाता....भले ही बेसुरे राग में..पर सुनाता जरुर.....क्या शानदार लिखा है....
sundar chitron se saji bahut hi behatarin prastuti. sare gazal bahut hi achchhi hai.
आदरणीय राजेन्द्र जी
कहना न् होगा कि मान सरस्वती साक्षात आपके मुखारविंद और लेखनी पर विराजमान है| जिसकी परिणिति ऐसी रचना में देखेने को मिलती है| कठिन बह्र पर हिंदी के काफियों का ऐसा मनमोहक प्रयोग सबके बूते कि बात नहीं है ...जिसने भी यह चैलेन्ज दिया होगा अब बगलें झाँक रहा होगा| ईश्वर से यही कामना है कि आपकी लेखनी सदा ऐसे ही बल बख्शते रहें जिससे हमें ऐसी ही लाजवाब कृतियाँ सुनने और देखने को मिलती रहें|
श्रृंगार रस की अनुपम रचना, बहुत अच्छा लगा आपके ब्लौग पर आकर! सधन्यवाद.
waah.....badhai.
rajedra ji
bahut hi badhiya aur ek naye andaaz me alag hat kar lagi .
aapki behtreen prastuti.
bahut bahut hardik badhai prastuti v puraskaar dono ke liye----
poonam
bahut sundar kavita...
आपका comment देखना बहुत सुखद था...
और इसके ज़रिये 'श्स्वरम' तक पहुंचना और भी सुखद और प्रेरणादायी..
आपकी शिकायत भी दूर करने की कोशिश की है ..
नयी post 'कश्मकश' भी देखें :)
sunder bimbon se saji rachna
aapko puraskar rashi milne ki badhai
rachana
मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. यह 'राजेन्द्र' के बाएँ हाथ का काम था, सो हो गया. ग़ज़ल अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब है.
'बालिका'सम्बोधन पर मुझे कुछ टीका स स्वाद महसूस हुआ.
वाह लाजवाब .........क्या शब्द माल है........ अत्यंत सुंदर .सौन्दर्य का अलंकृत चित्रण ...बधाई एवं नमन
वाह लाजवाब .........क्या शब्द माल है........ अत्यंत सुंदर .सौन्दर्य का अलंकृत चित्रण ...बधाई एवं नमन
अद्भुत प्रस्तुति...
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