आज फिर से प्रस्तुत है एक ग़ज़ल
जो एक तरही के लिए लिखी थी
मा’मूली रद्दोबदल के साथ आपकी नज़्र है
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
फ़रेबो-दग़ा मक्र मतलबपरस्ती
यही सब जहां है तो तीली लगादें
कहां खो गए लोग कहते थे जो यूं-
‘चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बनादें’
नहीं ग़मज़दा हमको होने की फ़ुरसत
मगर दीद उनकी हो , … हम मुस्कुरादें
नहीं हमको आता नज़र कोई काबिल
किसी में हो कूव्वत ; उसे ग़म सुनादें
तसल्ली सुकूं चैन कुछ भी नहीं है
कहां सर झुकादें …
कहां सर कटादें
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
चले आज राजेन्द्र फ़ानी जहां से
हो मिलना कभी ; हमको दिल से सदा दें
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright
by : Rajendra Swarnkar
आज बस इतना ही …
गर्मियों की
शुरुआत हो चुकी है
77 टिप्पणियां:
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
बहुत खूबसूरत गजल ... मन का द्वंद्व बयां हो रहा है ॥
प्रिय राजेंद्र भाई, आप सच्चे रचनाकार है. दिलसे लिखते हैं इसलिए रचना में जान आ जाती है. बधाई इस ग़ज़ल के लिए. हर शेर मर्म को छू रहा है. जिसे उठा लो. कभी -कभी मैं सोचता हूँ कि राजेंद्र स्वर्णकार जैसा मैं कब लिख पाऊँगा. इस जनम में तो शायद नहीं
खूबसूरत अश,आर से सुसज्जित ग़ज़ल .
विरह की वेदना को बढ़िया उजागर किया है .
राजेन्द्र भाई बहुत खुबसूरत गजल लिखी है बधाई..
आदरणीय राजेंद्रजी,
हर शेर एक से बढ़कर एक है ..
नहीं हमको आता नज़र कोई काबिल
किसी में हो कुव्वत उसे गम सुनादे
अब कहा खूब बोले कहा वाह्ह बोले !
kamaal...kamaal....vaah
sabse jyada ashaar pasand aaya vo hai raakh liye hum khade insaniyat ki......jabaab nahi rajendra...god bless
"किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें"
"कहने को तो कह देते हम भी गर जुबां खुलती "
खूबसूरत अशआर
waah.kya dio banega........wo bhi rajendra ji ki awaz me
भाई राजेन्द्र जी!
रवायती मिजाज़ की तरह पर सामयिक अशआर कहना बड़ी बात है और आपने इसे बड़ी खूबसूरती से कर दिखाया है. मैं तो बस यही कहूँगा कि "अल्लाह करे जोरे-कलम और जियादा.." .....मुबारक हो...
waah..khoobassorat gazal !!
नहीं हमको आता नज़र कोई काबिल
किसी में हो कुव्वत उसे गम सुनादे
खूबसूरत गजल |
बहुत खूब ... मुहब्बत की चाह लिखी है आपने ... मर्म स्पर्शीय गज़ल है ...
वाह!!!खूबसूरत सुसज्जित प्रस्तुति .
राजेन्द्र जी बहुत खुबसूरत गजल लिखी है बधाई..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
वाह वाह....................
बेहद खूबसूरत गज़ल..................
हर शेर नगीने सा.................
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें......
हम उनके लिए जिंदगानी लुटा दें.....
सादर
अनु
सब एक से....नाम क्या अलहदा दें....वाह क्या बेहतरीन लिखा है आपने
.
# अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें......
हम उनके लिए जिंदगानी लुटा दें.....
ओये होए… लूट लिया …
एक शे'र से पूरा मुशायरा लूटने वाली स्थिति है अनु जी
बहुत ख़ुशी हुई …
दिल से दाद और मुबारकबाद है !
वाह! क्या बात है राजेन्द्र भाई
कहां सर झुका दें कहां सर कटा दें
वाह! क्या बात है राजेन्द्र भाई
कहां सर झुका दें कहां सर कटा दें
बहुत सुन्दर गजल हैं ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें....
क्या खुबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय राजेन्द्र भईया....
सादर बधाई.
बेहतरीन गज़ल...मन की भावनाओं की लाज़वाब अभिव्यक्ति...आभार
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
मन को छूते हुए से इन पंक्तियों के भाव
कल 04/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं .... ...
accha laga ye pyari si gazal padhkar
बेहतरीन ग़ज़ल है राजेंद्र जी .... आपके और आपकी रचनाओं के बारे में कहने के लिए शब्द कम पड़ते हैं ... और ख़ास कर ग़ज़ल ... उम्मीद है एक मैं भी आपकी तरह उम्दा ग़ज़ल लिख सकुंगी ... शुभकामनाएं
उम्दा..बेहतरीन ग़ज़ल..
खड़े हम राख लिये इंसानियत की,
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें.
लाजवाब गज़ल. मर्मस्पर्शी भाव. आभार इस प्रस्तुति के लिये.
हृदय से उपजी पंक्तियाँ।
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें"
kamal hai ek ek sher lajavab hai
bahut bahut badhai
rachana
तसल्ली, सुकूं, चैन, पर्यायवाची
अगर इक नहीं है कोई नहीं है।
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
बेहतरीन सोच की बेहतरीन रचना.... शुभकामनायें /
बेहतरीन गज़ल!!
गज़ब कर गए है, राजेंद्र भाई, सारे ही शे'र लाजवाब है. बधाई, शुभ कामनाए.
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
बहुत खूबसूरत...मेरी बधाई...।
very touching.....bahut accha likhte hain aap rajendra jee....
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
बहुत खूबसूरत गजल सुन्दर प्रस्तीकरण के साथ.... बहुत-बहुत आभार आपका
खड़े हम लिए राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दे .....
वाह ...बहुत उम्दा ग़ज़ल पढ़ी है आपने ....!
जिसके सदके में सर झुकता हैं ,उसे रब कहें
जब रब ही धोखा दे ,उसे हम क्या कहें ||.....अनु
किसे हम चुनें और किसे छोड़ दें
हर शेर पर हम हजार दाद दें...
कहाँ खो गये लोग कहते थे जो यूँ -
’चलो ज़िन्दग़ी को मुह्ब्बत बना दें’
भाई राजेन्द्र जी, पूरी ग़ज़ल मानसिक ऊहापोह को बयान करती है. इस खूबसूरत अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद
खड़े हम लिए राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
जब शायर की सोच एहसास की आग में तपती है तो ऐसे ही शेर उभर कर आते हैं !
इस दौर का पूरा दर्द इस शेर में सिमटा है !
ग़ज़ल के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
खड़े हम लिए राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
जब शायर की सोच एहसास की आग में तपती है तो ऐसे ही शेर उभर कर आते हैं !
इस दौर का पूरा दर्द इस शेर में सिमटा है !
ग़ज़ल के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
...बहुत सुन्दर गजल!....वाह!...वाह!...बधाई!
bahut sunder,dil ki baat zuban par aai hai.
बहुत सुन्दर गजल !
लेकिन भाई ,
मुश्किल है मिलना ऐसी गंगा का
जिसका सपना संजोया है
हाँ
बहुत मिल जाये गी गली कूंचों में
राख इंसानियत की I
Rajendra Ji
Umda ghazal asusal !
हमेशा की तरह बेमिसाल ग़ज़ल ...
ख़ास यह शेर लगा..
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें"
बहुत खूब!
अच्छी गजल है राजेन्द्र जी,
आपकी सभी रचनाएँ पसंद आती हैं। आप नवगीत भी लिखें।
प्रतीक्षा रहेगी।
पूर्णिमा वर्मन
बहुत सुंदर भावपूर्ण
खड़े हम लिए राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
नेताओं भ्रष्टाचार और महंगाई कम करें
निर्धन के पेट में दो टूक डाल दे
dhnya ho rajendraji.......bahut khoob kaha ...
sab ke sab she'r dil me utar gaye..
भाई जी के बोलूं? आपनी तो बोलती ही बंद होगी या ग़ज़ल पढ़ र...
कमाल के अशआर...इतने सच्चे और सीधे के दिल में उतर गए...हालात की तल्खियों पर तंज़ भी है और अफ़सोस भी...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...ढेरों दाद कबूल करें...
नीरज
मित्रवर इतनी प्रशंसा की टिप्पणियां पढ़ने के बाद क्या कंहू ये समझ नहीं पा रहा हूं....कोई शब्द नहीं हैं बस इतना ही वाह क्या बात है..
भाई साहब, एक बेहतरीन गजल से रुबरु कराने के लिए शुक्रिया.... किस शेर को कोट करुं और किसे छोड़ूं.... समझ नहीं आ रहा... सब एक से बढ़कर एक.... हार्दिक शुभकामना है कि आप ऐसे ही लिखते रहें
KHOOBSOORAT ANDAAZ BEHATREEN ALFAZ....DEEPAK KULLUVI
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
-वाह!! बहुत खूब!!
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहादें
bahut sunder likha hai .....
badhai evan shubhkamnayen Rajendra ji ...
कट जाए सिर देश के लिए
झुकता है सिर्फ अपने वतन के लिए।
good.
www.yuvaam.blogspot.com
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
bahut hi achha likha hai
shubhkamnayen
भाई जी ,
पूरी ग़ज़ल ही सराहनीय है ! दिल से बधाई!
बहुत खूबसूरत गजल...हर शेर उम्दा है, बहुत बहुत बधाई!
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
waah! kya khoob kahi hai..
कहाँ खो गये लोग कहते थे जो यूँ
चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें...
वर्तमान जीवन की हकीकत और अन्तर्मन की बचैनी कि अभिव्यक्त करती हमेशा की तरह आपकी एक और खूबसूरत गज़ल!
बहुत-बहुत बधाई !
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
khoobsurat gazal.....
खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की
कोई पाक गंगा मिले तो बहा दें
बहुत सुन्दर .....
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
जी करता बार-बार पढे
Anuvart Shpahura Gopal Pancholi
फ़रेबो-दग़ा मक्र मतलबपरस्ती
यही सब जहां है तो तीली लगादें
बहुत खूब जनाब
प्यासा का गीत याद आ गया साहब
ये महलों......................
-Mahesh Soni
बहुत खूबसूरत गजल ***
हर शेर लाजवाब है, इसलिये मैं एक की तारीफ नहीं करूँगा.....बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....
मस्त अंदाज़ ....
शुभकामनायें आपको !
जी करता बार-बार पढे
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
Anuvart Shpahura Gopal Pancholi
तो तीली लगादें... vaah ! kyaa baat hai raajendr jee...
meraa link--- श्याम स्म्रिति ....http://shyamthot.blogspot.com
--लो आज छेड ही देते हैं उस फ़साने को...
राजेन्द्र जी!कृपया देर से आने के लिये क्षमा करें
आज कि प्रस्तुति का कोई जवाब नहीं ...!
लाजवाब है ..
बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....!!
बेहद खूबसूरत गज़ल..........
kya baat hai bhai Rajendra ji..... behtreen ....... badiya sher nikale hain aapne.....
sadhuwaad
राजेन्द्र जी आशीर्वाद
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर गजल
वेदनाओं भरी
Thanks designed for sharing such a pleasant thinking,
article is fastidious, thats why i have read it entirely
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