आवर्त
कितनी गलियों-राहों ,
कितने पंथों पर चल’ देखा !
नगर-नगर और द्वार-द्वार …
बस, स्वार्थ और छल देखा !!
बस, स्वार्थ और छल देखा !!
कितने सागर, कितनी
नदियां,
कितना नीर
तलाशा !
व्याकुल मन को थाह मिली
ना,
है प्यासा का प्यासा !!
है प्यासा का प्यासा !!
कितने पूजन-व्रत किए,
और… कितना ध्यान लगाया !
कितने मंदिर-तीरथ घूमा,
पर तू नज़र न आया !!
पर तू नज़र न आया !!
कितने गुणियों,
साधु-संतों को
पढ़-सुन कर देखा !
पढ़ ना पाया भाग्य की
रेखा,
और कर्मों का लेखा !!
और कर्मों का लेखा !!
कितने ज्ञानी-ध्यानी,
कितने योगी-जोगी ध्याए !
हृदय रहा अतृप्त-अशांत
ही,
कोई काम न आए !!
कोई काम न आए !!
कितने साधन जतन किए,
और… कितनी लगाई युक्ति !
गोता उतर’ लगाया !
स्व खो’कर सर्वस्व पा लिया;
परमानंद मुस्काया !!
परमानंद मुस्काया !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
मैं हृदय से आभारी हूं आप सबके प्रति
निभाते रहें
नमन
53 टिप्पणियां:
bahut gahre bhav.....bahut acchi prastiti rajendra jee.....
kuch gadbad ho rha hai.....bahut acchi prastuti....rajendra jee...
अपने घट में उतरना ही तो सबसे कठिन काम है .... बहुत सुंदर और सार्थक संदेश देती अच्छी रचना
bahut bhawpoorn rachna.....khoob pasand aayee.
सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना.....
बहुत कठिन है उस परमानन्द को प्राप्त करना जिसे आपने स्वयं के भीतर पा लिया... धन्य है ऐसी आत्मा को हमारा शत-शत प्रणाम... बहुत सुन्दर रचना
sarthak rachna Rajendra Ji..Badhai !!
रचना पढ़ते पढ़ते जो भाव मन में आ रहे थे , वे आखिरी पंक्तियों में आपने ही लिख दिए .
क्यों ढूंढें इत उत , ढूंढों बस स्व चित !
सुन्दर प्रस्तुति .
चलिये आप वहाँ तक पहुँच तो गये
बहुत अच्छी रचना...
हम तो बस हैं आत्मा
सब कुछ है परमात्मा...
यही भाव मन को शांति देती है.
हम तो बस हैं आत्मा सब कुछ परमात्मा है ...
बहुत अच्छी अध्यात्मिक अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,
MY RECENT POST ...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
स्वयं में ही है वो..
बहुत सुन्दर कविता
कलमदान
नस्वर संसार की सस्वर अभिव्यक्ति
वह बहुत सुन्दर
वाह क्या बात है!!! बहुत ख़ूब
नस्वर संसार की सस्वर अभिव्यक्ति
वह बहुत सुन्दर
वाह क्या बात है!!! बहुत ख़ूब
बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
कविता के भाव गहरे हैं और खूबसूरती से चित्रण किया है ...!!
गहन भाव लिए बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
भूल -भटक कर जो- जो भी उतरा घट के भीतर
उसने पाया मृग ज्यों क्स्तुरी को अपने ही भीतर
Anuvart Shpahura Gopal Pancholi
ham to prashansa karne yogya bhi nahi hain rajendra ji.bahut bahut sundar ,sundar prastuti..''manzil pas aayegi
सार्थक कविता कही है आपने ....किसी ने क्या खूब कहावत कही है बगल में बबुआ ढूढे फिरे गली गली ....ईश्वर तो अपने अंदर ही है फिर भी इसे न समझते हुवे हम हर जगह मंदिरों एवं मस्जिदों में ढूढते फिरते हैं
स्व खोकर सर्वस्व पा लिया
बहुत सुंदर !
यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
जब उतरा मैं घट के भीतर
गोता उतर’ लगाया !
स्व खो’कर सर्वस्व पा लिया;
परमानंद मुस्काया !!
.......................waah
Nisha Kothari
khucsurat abhivyakti...
स्व से सर्वस्व तक की यात्रा
धन्य है आप...।
Dileep Vasishth
जितनी सुन्दर रचना उतनी ही सुन्दर प्रस्तुति....
इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई.
जब उतरा मैं घट के भीतर
गोता उतर’ लगाया !
स्व खो’कर सर्वस्व पा लिया;
परमानंद मुस्काया !!
वाह!
जो सीख लिया है इतना
छोटा हुआ जग सागर,
बहुत बड़ी गहरी है बाबु
ये अंतर्मन की गागर
Indu Puri Goswami
अध्यात्म की पहेली ! सुन्दर कविता !
सही है, भीतर जाकर ही खुद से मिलना होता है.
स्व खो’कर सर्वस्व पा लिया;
परमानंद मुस्काया --------
सब कुछ पा लिया अब शेष ही क्या रहा ----
वाह
-दिव्या शुक्ला
कितने सागर, कितनी नदियां,
कितना नीर तलाशा !
व्याकुल मन को थाह मिली ना,
है प्यासा का प्यासा !!
मोकु कहां ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे ......
आदरणीय भाई राजेन्द्र जी की आध्यात्मिक रचना आत्मावलोकन करने के लिये उत्प्रेरित करती है
स्वयं ही स्वयं की मूरत (अंत:स्थल)में उतरकर अंतस की कुन्डलनी मूलाधार से सहस्त्रार तक जाग्रत करना पड़ेगी
तब जाकर स्व तत्व विलीन होगा, और शांति,मुक्ति का स्थायी-भाव संचरित होगा ..
भाई राजेन्द्र जी की रचनाएं अप्रतिम सौदर्य और शांति तत्व लिये होती हैं संगीत स्वभाव की भी और सशक्त भाव भी भरपूर होता हैं
अत: उन पर टिप्पणी सूरज को दिया दिखाने योग्य होती हैं
...सुंदर रचना पर मेरी बहुत बहुत बधाई ...
Aditya Tayal
बहुत खुबसुरत , लाजवाब
बहुत बहुत बधाई .
कदम-कदम पर होने वाले सच से सामने के पलों को बहुत खूबसूरत शब्दों में आपने लिखा है..
मन के बहुत गहरे और आध्यात्मिक भावों के जरिये उस हस्ती के दर्शन करवाएं हैं..
बहुत सुंदरता से आपने इंसान भाग दौड को लिखा है अपनी इस रचना में
लेकिन फिर भी किस तरह से वो अपने आपको असहाय सा महसूस करता है
इसको बहुत सुन्दर लिखा है इस रचना में..
बधाई स्वीकार करें.. Rajendra Swarnkar ji
~Sia Kumar
अद्भुत निरीक्षण!! वाकई घट में उतर क्र ही आप ले आए है यह सार-तत्व!!
अद्भुत निरीक्षण!! वाकई घट में उतर क्र ही आप ले आए है यह सार-तत्व!!
लाजवाब भावाभिव्यक्ति भाई सा ! अंतिम पद तो बेमिसाल है ! बधाई
Rajendra स्वर्णकार भाई साहब
सरल और कसे हुए शब्दों के संयोजन में एक बेहद खूबसूरत प्रवाह लिए हुए
सशक्त भावों की इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई...
बहुत सुन्दर, बेजोड़, कमाल की रचना है...
पढ़ते पढ़ते रोम-रोम सिहर गया...
सादर वन्दे...
~ सुरेन्द्र नवल
bahut khub waaah
बहुत बढि़या रचना राजेन्द्र जी। अध्यात्म के रंग में रंगी स्व की खोज के लिए प्रेरित करती रचना।
bahut bahut sundar...bahut badhai..
आपकी रचनाये साहित्य पठान के सुख से ज्यादा...आध्यात्मिक सुख भी देती हैं. हमेशा की तरह.
man ko chu gayi ye rahchna...
बहुत ख़ूब, राजेंद्रजी, बहुत ख़ूब.
'आध्यात्म' से गूढ़ विषय पर.... क़दम दर क़दम आगे बढ़ाते हुए मंजिल तक पहुंचा दिया है. सार्थक शायरी, अति सुन्दर प्रस्तुति.
इस घट के भीतर ही सब-कुछ समाया है।
अपने भीतर तलाशने से ही ‘उसे‘ पाया जा सकता है।
शांति प्रदायिनी रचना।
bahut hi achchhi prastuti..shubhkamnayen !!
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति भाई राजेन्द्र जी
Beautiful presentation
waah! last ka para sabse badhiya laga mujhe...
अत्यंत सरल शब्दों में परमानन्द प्राप्ति का रास्ता बता दिया,
बहुत खूब !
आपने अपनी रचना में मनुष्य द्वारा परमानन्द प्राप्ति के लिए
अपने सम्पूर्ण जीवन काल में किये गए अनेको जतनो के बजाय
स्व खोकर सर्वस्व पाने का अनुकरणीय सन्देश दिया है !
Dilip Dixit
sva kho kar hi parmeshvar milta hai
bahut hi sunder rachna
rachana
अपने घट के भीतर उतरना ही जरूरी है पर कठिन भी बहुत है ।
बेहद सुंदर और सच्ची रचना ।
एक टिप्पणी भेजें