ग़ज़ल
खड़ा मक़्तल में मेरी
राह तकता था मेरा क़ातिल
सुकूं था मेरी सूरत
पर , धड़कता था उसी का दिल
बचाना
तितलियों कलियों परिंदों को मुसीबत से
सभी
मा'सूम होते हैं हिफ़ाज़त-र ह्
म के क़ाबिल
पता है ; क्यों बुझाना चाहता तूफ़ां चराग़ों को
हुई लेकिन हवा क्यों
साज़िशों में बेसबब शामिल
मैं
अपनी मौज में रहता हूं बेशक इक ग़ज़ाला ज्यूं
दबोचे
कोई हमला'वर नहीं इतना भी मैं गाफ़िल
न लावारिस समझ कर
हाथ गर्दन पर मेरी रखना
सितारा हूं ; अगर टूटा… बनूंगा मैं महे-कामिल
ग़ज़ल
से जो तअल्लुक पूछते मेरा
; ज़रा सुनलें
समंदर
भी मेरा , कश्ती मेरी , ये ही मेरा
साहिल
कशिश है ज़िंदगी
में जब तलक दौरे-सफ़र जारी
हसीं ख़्वाबों का
क्या होगा , मिली राजेन्द्र गर मंज़िल
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
58 टिप्पणियां:
बहुत-बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !:)
हमें भी एक शेर याद आ गया...
"कह दो आँधियों से अब आएँ बुझाने को...
हमने खूँ अपना जला रक्खा... है चिराग़ों में..."
~सादर !
अभी तो बस आनंद ले रहे हैं इस खूबसूरत ग़ज़ल है .....
माशाल्लाह ....!!
एक -एक हर्फ़ दिल में उतर रहा है ....
चलें पहले कुछ परिंदों तितलियों को बचा आयें .....:))
हर शेर लाजवाब है और हर ख्याल पुरअसर ! बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है राजेन्द्र भाई ! मेरी मुबारकबाद कबूल कीजिये !
खुबसूरत अहसासों से भरी गज़ल...
मुबारक कबूलें!
बहुत खूब बहुत खूब !
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
वाह... वाह..
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ...
हर शेर नायाब ...
बधाई आपको दिल से ..
बहुत खूबसूरत गज़ल....
बेहतरीन...बहुत खूबसूरत गजल...
GAZAL ACHHEE LAGI SUKRIYA.
DR. KISHAN TIWARI BHOPAL
वाह ... हर शेर जबरदस्त ...आभार आपका इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
सकूं था मेरी सूरत पर , धड़कता था उसी का दिल.
वाह वाह ! बहुत खूब !
हमें तो सबसे ज्यादा यही पंक्ति समझ में आई.
बहुत सुन्दर...।
बहुत ही सुन्दर.....
Vaah sunder akarshak nazare par shabdon ka sahi ankush
Rajendraji
aap ki qalam aap ki pehchaan bani hai
badhayi
Devi Nangrani
बहुत सुंदर ग़ज़ल है
महे-कामिल वाला बहुत अच्छा है
शब्दार्थ नहीं रहता तो समझ में ही नहीं आता...
सादर बधाई
क्या कहूँ आपके लिये राजेन्द्र जी, शब्द पर्याप्त नहीं.अद्भुत है आपका सृजन!
शब्दार्थ देकर बहुत अच्छा किया .
अल्फाज़ हैं या झिलमिलाते तारे..!
बार-बार गुनगुनाने के लिए प्रेरित करती शानदार ग़ज़ल।
गजल की समझ मेरी यहीं विकसित हो रही है। शब्दों के इस्तेमाल पर ही मुग्ध रहता हूँ। स्वर्णकार जी अब निकष हो गए हैं पढ़ते-पढ़ते लोह-सी चमकहीन आँखें स्वर्ण-सी सहसा चमक जाती हैं। एक अचम्भा हमेशा बना रहता है कि कैसे कोई इतने करीने से अभिव्यक्ति को सजा सकता है! अद्भुत है कवित्व-शक्ति। मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ यहाँ दोहराना चाहूँगा :
अयि, दयामयि देवि सुखदे सारदे!
इधर भी निज वरद पाणि पसार दे।
दास की यह देह तंत्री तार दे।
रोम-तारों में नयी झंकार दे।
बैठ मानस हंस पर कि सनाथ हो।
भारवाही कंठकेकी साथ हो।
bahut hi achha likha hai
bachana titliyon kaliyon parindon ko musibat se
sabhi masoom hote hain hifajat-raham ke kabil
bahut gehre bhaav liye hain.
shubhkamnayen
पता है ; क्यों बुझाना चाहता तूफ़ां चराग़ों को
हुई लेकिन हवा क्यों साज़िशों में बेसबब शामिल
मैं अपनी मौज में रहता हूं बेशक इक ग़ज़ाला ज्यूं
दबोचे कोई हमला'वर नहीं इतना भी मैं गाफ़िल
लाजबाब अशआर लिखे हैं राजेन्द्र जी सभी एक से बढ़कर एक बहुत बढ़िया ग़ज़ल दाद कबूल करें
बहुत खूबसूरत और शानदार गजल | एक एक शेर जबर्दस्त | दिल खुश हो गया पढ़ के |
मेरी नई पोस्ट-गुमशुदा
हरेक शेर खुबसूरत है... लाजवाब... इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई....
आकर्षण
बहुत खूब..
उम्दा गजल |यह अच्छा लगा की आपने कठिन शब्दों के मीनिग भी दिए हैं |
आशा
सुन्दर शेर
खूबसूरत गज़ल
बेहतरीन..;)
लिखते तो आप भी लाजवाब हैं। उर्दू और हिंदी भाषाओँ में रची कई रचनाएँ सभी लाजवाब हैं। एक ख़ुशी ये भी है की आप हमारे राजस्थान से हैं। भारतीय ब्लोगर्स के सामूहिक समूह ''इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड '' पर आपका स्वागत है। आप भी इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड के सदस्य बनकर भारतीय ब्लोगर्स के साथ साथ हिंदी ब्लॉग जगत में चलते रहिये।
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
इतनी बढ़िया गजल पर -नि:शब्द हो जाता हूँ-
पहले भी पढ़ी थी सुबह में-
पर दुबारा पढ़कर भी नि:शब्द हूँ-
आभार आदरणीय ||
सिखने की कोशिश यहाँ भी की है मैंने-
मात्राओं को कैसे मिलते हैं-
कुछ कुछ समझ आ रहा है-
सादर ||
लहरों का अपना खेला है जिधर ले जाएँ असल बात है समुन्दर में उतरना शायरी करना .
बेहतरीन ग़ज़ल राजेंद्र जी.
भाई साहब कुछ भी कहने की औकात नहीं . समन्दर भी आपका , कश्ती भी आपकी , साहिल भी आपका अपना क्या बात कही है आपने. निःशब्द ..
वाह भाई वाह। इस मुकम्मल लाजवाब ग़ज़ल पर बधाई।
राजेन्द्र जी
एक अच्छी गज़ल के लिए बधाई
रमेश जोशी
--
रमेश जोशी, Ramesh Joshi
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भाई जी
देरी से आने की माफ़ी...लेकिन क्या आनंद आया है यहाँ आ कर ...वाह...एक एक शेर हीरे सा तराशा हुआ है....सच्चे जोहरी हो आप भाई जी...आपकी ग़ज़लें और अंदाज़े बयां सबसे जुदा होता है...लाजवाब...गज़ब...बेमिसाल...ढेरो दाद कबूल करें...लिखते रहें.
नीरज
दिल खुश कर दिया..क्या लिखा है बास..आपने मगर इसे गाया क्यों नहीं....या मुझे वो लिंक दिखा नहीं?
Bahut khubsurat bhaav...
मतले से मक़ते तक मोती जड़ दिए हैं आदरणीय राजेंद्र भाई जी, बेहद पुरनूर और पुरकशिश अशार हुए हैं, मेरी दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएं
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है
राजेन्द्र जी ...हरेक शेर सीधा दिल तक उतर गया ... लाजवाब गज़ल...
bahut hi khubsurat panktiya... sunder prastuti.
वाह!वाह!और बस वाह!
बहुत उम्दा ग़ज़ल .
वाह!वाह!और बस वाह!
बहुत उम्दा ग़ज़ल .
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.....सशक्त रचना......
very sweet!
बहुत सुन्दर व् सार्थक भावाभिव्यक्ति .बधाई
दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज
bahut sundar gazal ....
shubhkamnayen.
very nice gazal...
बहोत सुंदर ग़ज़ल ।
बचाना तितलियों कलियों परिंदों को मुसीबत से
सभी मा'सूम होते हैं हिफ़ाज़त-रहुम के क़ाबिल
वाह...बेहद खूबसुरत शे'र
आपकी हर बात को सर आंखों पर रखा दिया हमने
देख़ो फ़िर एक कहानीओ फ़साना लिख दिया हमने
bahut hi umda bhav. khoobsurat abhivyakti.
उम्दा...हमेशा की तरह,...वाह!
आप सबका हृदय से आभार !
स्नेह भाव बनाए रहिएगा …
संपर्क / संवाद की कमी के कारण मुझे अपने स्नेह से वंचित न करें …
शुभकामनाओं सहित…
#
12-12-12 के अद्भुत् संयोग के अवसर पर
लीजिए आनंद ,
कीजिए आस्वादन
वर्ष 2012 के 12वें महीने की 12वीं तारीख को
12 बज कर 12 मिनट 12 सैकंड पर
शस्वरं पर पोस्ट किए
मेरे लिखे 12 दोहों का
:)
सुन्दर गज़ल....
जाने कैसे रह गयी पढ़ने से..
क्षमा...
दोहे नज़र नहीं आ रहे..
सादर
अनु
आदरणीय राजेन्द्र भईया
सादर नमस्कार
आनंद आ गया खुबसूरत गजल के एक एक शेर को पढ़कर...इसे गुनगुनाते हुए ख़याल आता रहा कि अगर इस गजल में आपकी आवाज भी होती तो क्या ही आनद आता...
सादर बधाई स्वीकारें शानदार गजल के लिए...
बहुत सुन्दर ........
वैसे कोई कवियत्री तो हम भी नहीं फिर भी आप हमारे ब्लॉग पर आ हमारा उत्साहवर्धन किया आपका बहुत बहुत आभार ..आशा है हूँ ही हमारा मार्गदर्शन करतें रहेगें ..बहुत बहुत धन्यवाद ..
बहुत सटीक व्यंग पूर्ण दोहे भैया .......
वैसे कोई कवियत्री तो हम भी नहीं फिर भी आप हमारे ब्लॉग पर आ हमारा उत्साहवर्धन किया आपका बहुत बहुत आभार ..आशा है हूँ ही हमारा मार्गदर्शन करतें रहेगें ..बहुत बहुत धन्यवाद ..
आपके ब्लॉग पर हम टिप्पड़ी कर नहीं प् रहे है क्यों ?
nice artical sir
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