चमन के सरपरस्तों से न गर नादानियां होतीं
न फिर ये ख़ार की नस्लें हमारे दरमियां होतीं
न फिर ये ख़ार की नस्लें हमारे दरमियां होतीं
मुख़ालिफ़ हैं ये सच-इंसाफ़ के ; उलझे सियासत में
ख़ुदारा , पासबानों में न ऐसी ख़ामियां होतीं
ख़ुदारा , पासबानों में न ऐसी ख़ामियां होतीं
असम छत्तीसगढ़ जम्मू न मीज़ोरम सुलगते फिर
न ही कश्मीर में ख़ूंकर्द केशर-क्यारियां होतीं
न ही कश्मीर में ख़ूंकर्द केशर-क्यारियां होतीं
निभाती फ़र्ज़ हर शै मुल्क की गर मुस्तइद हो'कर
धमाके भी नहीं होते , न गोलीबारियां होतीं
धमाके भी नहीं होते , न गोलीबारियां होतीं
सियासतदां जो होते मर्द , उनका खौल उठता ख़ूं
अख़ीरी जंग की फ़िर पाक से तैयारियां होतीं
अख़ीरी जंग की फ़िर पाक से तैयारियां होतीं
न हिजड़ों को बिठाते हम अगर दिल्ली की गद्दी पर
न चारों ओर बहते ख़ून की ये नालियां होतीं
न चारों ओर बहते ख़ून की ये नालियां होतीं
वतन के वास्ते राजेन्द्र ईमां दिल
में गर रखते
न शान-ए-हिंद में गद्दारों की गुस्ताख़ियां होतीं
-राजेन्द्र स्वर्णकार
न शान-ए-हिंद में गद्दारों की गुस्ताख़ियां होतीं
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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आज़ादी अभी अधूरी है !
क्या बधाई दें ?
क्या बधाई दें ?
वंदे मातरम् !
वंदे मातरम् !
वंदे मातरम् !
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यहां भीआइएगा
सजबा लागा गमलां मांहीं आक कैक्टस थोर !रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यांबुगला बणग्या मोर !धरमी पिंडा-मुल्ला : लम्पट ढोंगी ठग्गू चोर !लीडर : मुज़रिम गुंडा तस्कर ख़ूनी रिश्वतखोर !जनता री सेवा में पग-पग बैठा टुक्कड़खोर !जोर लगालै जोर !
60 टिप्पणियां:
सियासत जाँ जो होते मर्द..........काश कि होते ।
बहुत दबंग गज़ल ।
जो कहा है सच कहा है,प्रखर स्वरों में कहा है,बहुत स्पष्ट और तीखें तेवरों में कहा है-इस सत्यप्रियता और शब्द-सामर्थ्य को मेरा नमन !
समय लौट आयेगा फिर से स्वर्णिम अपना।
सच कहा हमारी आजादी अभी अधूरी है....... बहुत कम करने हैं........... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें .....
सच कहा हमारी आजादी अभी अधूरी है....... बहुत कम करने हैं ....... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ....
सच कहा हमारी आजादी अभी अधूरी है....... बहुत कम करने हैं ....... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ....
वन्दे मातरम्,
बहुत खूब, राजेंद्रजी, उम्दा ग़ज़ल .
जो पकडे जा चुके 'रिश्वत' में फांसी उनको दे देते,
न फिर ईमान बिकता और न ये लाचारिया होती .
http://mansooralihashmi.blogspot.com
बहुत बढ़िया.............
दिल से निकले उद्गार.......
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई !!
सादर
अनु
अतिसुन्दर,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत बढिया गज़ल । स्वतन्त्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनायें
जायज है आपका आक्रोश ... शर्म आती है देश के नेताओं पे आज एक दिन ...
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ...
हर दिल की आग को बड़ी शिद्दत के साथ अपनी इस गज़ल के माध्यम से बयान कर दिया है आपने ! सच में बड़ी शर्मिंदगी का एहसास होता है जब इतने स्वार्थी और लालची नेताओं को गद्दी पर काबिज देखते हैं ! बहुत ही सुंदर गज़ल है ! स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
मित्र आजादी की मुबारकवाद तो देंगे ही हम....बात एकदम सच लिखी है..हम लोग खुद ही इस दुर्दशा के जिम्मेदार हैं..जैसे हम लोग हैं वैसी ही शासन व्यवस्था हमा्री किस्मत होगी....चंद हम आप जैसे सिरफिरे लोगो के हाथ में तकात नहीं है...ओर हम एकजुट नहीं हैं..इसलिए भी ताकत नहीं है हम लोगो में....तो जबतक सब जाग नहीं जाते तब तक हमें ऐसी परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा...
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 17/08/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
सच्चाई को प्रदर्शित करती गजल !!
बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति...जय हिन्द!
बेहतरीन ग़ज़ल सादर नमन
सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति...जय हिन्द…वन्दे मातरम
नमस्ते सदा वत्सले मात्र्भुमें ...
वन्देमातरम !
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुंदर सटीक और सशक्त गजल ,,,बहुत बहुत बधाई...राजेंद्र जी
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
सशक्त रचना
बहुत ही उम्दा गज़ल। मुबारकबाद।।
बहुत ही उम्दा गज़ल। मुबारकबाद।।
बहुत ही उम्दा गज़ल। मुबारकबाद।।
shandar, jandar, dhamakedar ............ rajendra ji tussi gr8 ho.............. kaash gaddaaron ke kaanon tak aap kee aawaaz pahunche.............
bht khoobsurat shabdon se buni gai panktiyan ,
bht khoob janab
Aleena Itrat
वाह! राजेन्द्रजी क्या खूब कहा है,24 कैरट शुद्ध बात, गजल का गठन ऐसा कि बार बार पढ़ने का मन करे, भाव, शब्द चयन अद्वितीय| बहुत ही कसी हुई गजल| बधाई|
पर क्या कर सकते हैं? हम ही उन्हें सरपरस्त बनाते हैं या यों कहिए कि बनाने पर मजबूर हैं, कारण कि आँख बंद करके पत्थर फेकिए, मौकापरस्त पर ही गिरेगा-
रहनुमा
वे मक्कार हैं,
वे बदकार हैं,
देश डकार कर भी,
लेते नहीं डकार हैं,
फिर भी हम उन्हें चुनते हैं,
इस लिए हम पर धिक्कार हैं|
वे पीर हैं, वे जुमाँ हैं,
वे बद-जुबां है,
वे बद-गुमाँ हैं,
वे देश पर दाग बद-नुमाँ हैं,
फिर भी वे देश के रहनुमाँ हैं|
ये ग़ज़ल दहला देने वाली है . दिल्ली सुने तो उसकी आत्मा जगे. इसी तरह लिखते रहें, यह समय प्रतिवाद करते रहने का है . एक बार फिर इस बड़ी रचना के लिए शुभ कामनाएं
भाई जी
सच्चे सोने सी खरी ग़ज़ल है आपकी .जोश के साथ साथ होश भी जगाती . आज के हालात की बेबाक बयानी . जय हो .किसी शेर पर मुठ्ठियाँ तन जाती है तो किसी पर शर्मिंदगी से सर झुक जाता है . ग़ज़ल क्या है दर्पण है जो है वो दिखा रहा है . वाह वाह वाह ....जियो भाई जी जियो.
नीरज
भाई जी
सच्चे सोने सी खरी ग़ज़ल है आपकी .जोश के साथ साथ होश भी जगाती . आज के हालात की बेबाक बयानी . जय हो .किसी शेर पर मुठ्ठियाँ तन जाती है तो किसी पर शर्मिंदगी से सर झुक जाता है . ग़ज़ल क्या है दर्पण है जो है वो दिखा रहा है . वाह वाह वाह ....जियो भाई जी जियो.
नीरज
भाई जी
सच्चे सोने सी खरी ग़ज़ल है आपकी .जोश के साथ साथ होश भी जगाती . आज के हालात की बेबाक बयानी . जय हो .किसी शेर पर मुठ्ठियाँ तन जाती है तो किसी पर शर्मिंदगी से सर झुक जाता है . ग़ज़ल क्या है दर्पण है जो है वो दिखा रहा है . वाह वाह वाह ....जियो भाई जी जियो.
नीरज
AAPKEE SASHAKT VANI HAR TARAF GOONJE . BAHUT KHOOB !
न गद्दारों की यूँ गुस्ताखियाँ होती ........वाह .....जब जब आपका लेखन पढ़ती हूँ .....लिखने पढने का जोश बढ़ जाता है .साधुवाद एवं धन्यवाद
achchhi ghazal hai Swarnkarji.badhai
वन्दे मातरम।
देश की परिर्स्थिति का सुन्दर चित्रण किया है आपने इस देशबक्ति से ओत-प्रोत ग़ज़ल में।
--
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
राजेन्द्र जी , बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आ रहा हूँ. माफ़ी चाहूँगा .
देशप्रेम से भरी हुई ग़ज़ल के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ..आपके ब्लॉग पर आना हमेशा ही ख़ुशी दे जाता है .. सच्ची
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
पूर्ण स्वराज मिलना बाकी है अभी भी.वाकई.
very nice.
nice
बहुत तेजस्वी ओजस्वी गजल ।
ओजस्वी स्वर!
प्रखर भाव!
राष्ट्र पर्व एवं अन्य त्योहारों की शुभकामनाएं!
सादर!
बहुत सुन्दर सशक्त ग़ज़ल ,बधाई राजेंद्र जी !
kash ki aisee batten sab ki samajh men aati ....
वन्दे मातरम् ! बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी आपने . यूँ वतन के लिए जोश भरने वाले ग़ज़ल कम ही लिखे ज्जाते हैं. नपे तुले शब्दों में अतुल्य भाव प्रवाह .. बहुत खूब .
पांच अंगुलियाँ हैं बिखरी हुई, मुठ्ठी गर बन जाए,
न शर्मिंदगी, न लाचारी न दुश्वारियां होती ..
आपका बहुत आभार
जोश-ए -भरपूर शायरी सुन कर आपकी,
हमारी तरफ से भी खूब तालियाँ होती !
बहुत जोशीली प्रस्तुति ...
सच कहा आपने आज़ादी अभी अधूरी है
वाह एक एक लफ्ज़ हिन्दुस्तान के दिल की आवाज़ का कह दिया इस तराने में ,आज के बे दिल फ़साने में। इसे सुन्दर भी कैसे कहें जबकि भदेस है यहाँ सब कुछ।
वाह एक एक लफ्ज़ हिन्दुस्तान के दिल की आवाज़ का कह दिया इस तराने में ,आज के बे दिल फ़साने में। इसे सुन्दर भी कैसे कहें जबकि भदेस है यहाँ सब कुछ।
सार्थक अभिव्यक्ति
सच्चे देश भक्ति के जज़्बात को नमन
हार्दिक शुभकामनायें
वाह...जोश से भरी ग़ज़ल...बहुत शानदार !!
एक साथ स्वतंत्रता दिवस, रक्षाबंधन एवं कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ !!:)
gajal ke madhyam se ap ne katu saty ko paribhashit kr diya hai ....hardik badhai bhai sahab.
bahut accha poem...
वाह! राजेन्द्रजी क्या खूब कहा है,24 कैरट शुद्ध बात, गजल का गठन ऐसा कि बार बार पढ़ने का मन करे, भाव, शब्द चयन अद्वितीय| ...
चन्द्र पाल जी के सब्द ही मेरे समझें .....
आपकी भेजी तस्वीर ब्लॉग पे लगा दी है ....!!
वाह सर क्या बात है,बहुत ही बेहतरीन देश भक्ति पूर्ण रचना लहू में जैसे अंगार घोल दिए हो किसी ने
आपको समर्पित
जब भी ये बाजू फड़केंगे,सीने में आग लगी होगी
नापाक पाक मिटाने को,जब भागमभाग लगी होगी
गलियां गलियां बस्ती बस्ती शहर सभी चढ़ दौड़ेंगे
देश के वीरो में इक दिन ऐसी अलख जगी होगी
गज़ल भी इतनी जोश खरोश भरी हो सकती है यह आपकी गज़ल पढ़ कर जाना ..... आभार ।
gahan abhivyakti ...
bahut sunder gazal badhai aapko
rachana
पूरी तरह सहमत हूं। इन कमबख्तों ने देश को बेच खाया।
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