सुस्वागतम्
अनवरत … अपलक अन्योन्याश्रित सान्निध्य में
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
सूक्ष्म की , विराट की ,
रचेंगे पदचिह्न
सहेजते हुए
साहित्य संगीत कला
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
वृत होगा अनावृत
वर्तुल लेगा विस्तार
व्यष्टि बनेगी समष्टि
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
करेंगे प्रदक्षिणासूक्ष्म की , विराट की ,
रचेंगे पदचिह्न
सहेजते हुए
साहित्य संगीत कला
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
आते रहें
होती रहेंगी बातें
और मुलाक़ातें
शब्द स्वर रंग के माध्यम से !
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आइए, प्रथमतः वीणापाणि वागीश्वरी के श्रीचरणों में वंदन करलें …
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जय सरस्वती मां !
वीणावादिनि विभुप्रिया , आमंत्रण आह्वान !
शुक्ला प्रज्ञा शारदा , दो विद्या - निधि दान !!
वाङ्मयी वरदा बसो , उर अंतर अवगाह !
नस - नस निर्झर झर उठे , सुगुण सुज्ञान प्रवाह !!
विद्यारूप विशालाक्षी , कीजे तम - निस्तार !
सुर सम्राज्ञी सरस्वती , करो विभा - विस्तार !!
जय सरस्वती मां उज्ज्वला , जय श्वेतपद्मविराजिता !
जय बुद्धिदात्री ब्रह्मिणी , पद्मोद्भवाश्रुतिरंजिता !!
हे शुभ्रवसना नमो नमः !
मातेश्वरी जय भारती , वागीश्वरी भुवनेश्वरी !
जय कुमुदिप्रोक्ता शारदा , जय जगतिख्याता ईश्वरी !!
जय वीणापाणि नमो नमः !
जय चंद्रकांति गिरा इला , ज्योतिर्मयी धीदायिनी !
शुचि ब्रह्मचारिणी ब्रह्मरूपा , वीणा - पुस्तक - धारिणी !!
दैदीप्य दीप्ति नमो नमः !
जय हंसवाहिनी भगवती , मृदुहासिनी गुणदायिनी !
परमेश्वरी विश्वेश्वरी , सर्वेश्वरी वरदायिनी !!
जाज्ज्वल्य ज्योति नमो नमः !
अरदास मम सुन वत्सला , उर कंठ - श्वास - विराजिनी !
सान्निध्य आश्रय दो अहर्निश ; विपुल संपतिदायिनी !!
आनंददात्री नमो नमः !
सुखराशि शुभदा नमो नमः !!
हे सौम्यरूपा नमो नमः !!!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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… आप मेरी प्रथम प्रविष्टि के रूप में
माता सरस्वती-शारदा के चरणों में समर्पित मेरे शब्द-पुष्पों की पांखुरियां अपने चक्षुओं से स्पर्श कर ही चुके हैं ।
इसी कड़ी में पर्वरदिगारे-आलम को याद करते हुए
इश्के-मजाज़ी से इश्के-हक़ीक़ी में तब्दील होते अक़ीदत के चंद फूल ग़ज़ल की शक़्ल में पेशे-ख़िदमत हैं …
इसी कड़ी में पर्वरदिगारे-आलम को याद करते हुए
इश्के-मजाज़ी से इश्के-हक़ीक़ी में तब्दील होते अक़ीदत के चंद फूल ग़ज़ल की शक़्ल में पेशे-ख़िदमत हैं …
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इधर महबूब है ऐ दिल
किसे पाना मुनासिब है , किसे बेहतर गंवाना है
इधर महबूब है ऐ दिल , इधर सारा ज़माना है
जली है शम्ए-उल्फ़त , रौशनी ख़ुद मुस्कुराएगी
सभी तारीक़ियों को शर्तिया जाना ही जाना है
मुझे उसने क़बूला , मैं उसे तस्लीम करता हूं
ये क़ाज़ी कौन होता है ; किसे कुछ क्या बताना है
यहां मत ढूंढना मुझको , यहां अब मैं नहीं रहता
यहां रहता मेरा दिलबर , ये दिल उसका ठिकाना है
ज़हर पीना पड़ेगा आप गर सुकरात बनते हो
अगर ईसा बनोगे ख़ुद सलीब अपनी उठाना है
गिले-शिकवों से रंज़िश-बैर से मत यार , भर इसको
ये दिल है या कोई ख़ुर्जी है , कोई बारदाना है
नहीं अपना कोई भी यां पराया भी नहीं कोई
चलो राजेन्द्र छोड़ो क्या किसी को आज़माना है
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
ख़ुर्जी = (फ़ारसी शब्द ) = गधे-ख़च्चर की पीठ पर लादा जाने वाला, सामान - मलबा ढोने के काम आने वाला थैला ,
बारदाना = (फ़ारसी शब्द ) = सामान/कचरा भरने का जूट आदि का बड़ा थैला/बोरा
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… और आज की अंतिम प्रस्तुति !
ऐसे नहीं , पहले आपका नाम लिखूंगा , फिर मुस्कुरा कर सलाम लिखूंगा ।
रोम - रोम , नस - नस में आपकी स्मृतियां मूंगे और मोतियों के दाम लिखूंगा ।
रोम - रोम , नस - नस में आपकी स्मृतियां मूंगे और मोतियों के दाम लिखूंगा ।
आप नज़रे- इनायत कीजिए तो सही …!
मेरी मायड़ भाषा राजस्थानी में सृजित यह ग़ज़ल
आप सब गुणीजनों तक अवश्य ही संप्रेषित हो सकेगी …
आप सब गुणीजनों तक अवश्य ही संप्रेषित हो सकेगी …
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नाम लिखूंला
पैलां थां'रो नाम लिखूंला
ओजूं मुळक' सिलाम लिखूंला
म्हारै मन री सैंग विगत म्हैं
काळजियै नैं थाम' लिखूंला
रूं-रूं नस-नस थां'री ओळ्यूं
मोत्यां-मूंगै दाम लिखूंला
थां'रो तन मदिरालय लिखसूं
मन नैं तीरथधाम लिखूंला
छेकड़ दो ओळ्यां मांडूंला
ख़ास ज़रूरी काम लिखूंला
लिखसूं थां'नैं भोळी राधा
ख़ुद नैं छळियो श्याम लिखूंला
नीं स्रिष्टी में लाधै राजिंद
प्रीत इस्यी सरनाम लिखूंला
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत भी है , प्रतीक्षा भी ।
भविष्य के लिए अनेक योजनाएं हैं ;
आगामी पोस्ट तक विदा लेता हूं ।
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28 टिप्पणियां:
गजब यार राजेन्द्र
तुमने तो कमाल कर दिया
यूँ की धोती फाड़ के रुमाल कर दिया
एक म्यान में इत्ती सारी तलवारे....??
वल्लाह रे...वल्लाह रे...वल्लाह रे !!
लेकिन यार,इतने सारे रंग एक ही साथ दिखा दोगे तो हम सब को तुमसे कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हो जायेंगी....है ना.....??
सर्वप्रथम मां शारदा को मेरा चरण वंदन ।
भाई साहब राजेन्द्र जी आपको बहुत बहुत बधाई इस प्रयास के लिये| मेरी ढेर सी शुभकामनाए स्वीकार कीजियेगा | आपका बेहद आभार ।। धन्यवाद|
स्वागतम *** स्वागतम *** स्वागतम
ब्लॉग की दुनिया में आपका तहे दिल से स्वागत है !
बहुत अच्छा लगा कि आपने ब्लॉग प्रारम्भ कर दिया !
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किसे पाना मुनासिब है , किसे बेहतर गंवाना है
इधर महबूब है ऐ दिल , इधर सारा ज़माना है
यहां मत ढूंढना मुझको , यहां अब मैं नहीं रहता
यहां रहता मेरा दिलबर , ये दिल उसका ठिकाना है
मुझे उसने क़बूला , मैं उसे तस्लीम करता हूं
ये क़ाज़ी कौन होता है ; किसे कुछ क्या बताना है
आह ..... बहुत खूब
क्या ग़ज़ल है राजेन्द्र जी
हाकर शेर पे सौ-सौ बार कुर्बान
बेहतरीन ....लाजवाब
बहुत-बहुत शुभ कामनाएं
त्रुटी सुधार :
कृपया "हाकर" की जगह "हर एक" पढ़ें
sunadar pahal hai bhai. aapke lekhan me sambhavana hai. badhai..
rajendra jee , aap ka blog ki bahut abhut badhae.
बहुत बहुत स्वागत है आप का और बधाई भी नए ब्लॉग के लिए.
Aap ki rachanyen pasand aati hain.
माँ सरस्वती की वंदना और
ग़ज़ल भी बहुत पसंद आई.
उर्दू और हिंदी पर आप की पकड़ बहुत मजबूत है.
शुभकामनायें
वीणा पुस्तक धारिणी माँ सरस्वती की वंदना कर आज बहुत ख़ुशी हुई.
ग़ज़ल आपके उत्कृष्ट शोराय कलाम की बानगी है.
राजस्थानी भाषा तो मुझे भी बहुत प्रिय है मेरे कुछ मित्र हैं उन्हें सुनने की ख्वाहिश रखता हूँ.
"रूं-रूं नस-नस थां'री ओळ्यूंमोत्यां-मूंगै दाम लिखूंला.."
बहुत सुन्दर...!
राजेन्द्र जी,
हम सफ़र में साथ हैं. शुक्रिया!!
Saraswati maa ko vandan...bahut khoob likha....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
bhai rajender ji,
jai rajasthani,jai rajasthan!
aapre blog mathe ghoom bada maza aaya.ras,rang ra thast lootiya.geet ghzal ra lutf uthaya.jev soro hogyo!24 takka shudh sone jedi rachnavan mili aap re blog mathe.badhayje!
ab ek din kadh para mhare blogde math aavo dekhan!
http//www.omkagad.blogspot.com
तारीख व समय :9अप्रेल,2010 / 2:12am
जोगेश्वर जी गर्ग द्वारा ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी…
वाह राजेन्द्रजी!
ब्लॉग जगत में धमाकेदार एंट्री. आपरो स्वागत है इण निराली दुनिया में.
आपरो हर रंग चोखो लाग्यो. पूत रा पगल्या पालणा में इज दीखग्या.
एक निवेदन. "सलाम" ने "सिलाम" नी बणावो तो भी चालेला.
आ भी एक खतरनाक बीमारी है.
म्हारी घणी घणी शुभ कामनावां !
फेर मिलालां !
सुरीली वांणी रा धणी राजेन्द्रजी रौ ब्लॉग री दुनिया मांय सुवागत करतां हरख हुवै।
आपरौ सुवागत है सा------
गीतां अर गजलां रा कारीगर स्वर्णकारजी सूं आखी मसीनी दुनियां इब रू-ब-रू हुसी।
इण सूं मातभासा रौ मान और बधसी।
जै राजस्थानी।
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आपने पहली ही पोस्ट में यह सिद्ध कर दिया कि संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी और उर्दू पर आपका एक समान अधिकार है।
ग़ज़ल बहुत अच्छे संदेश लिये है।
ज़हर पीना पड़ेगा आप गर सुकरात बनते हो
अगर ईसा बनोगे ख़ुद सलीब अपनी उठाना है
क्या बात कही है।
बधाई ।
संगीत और कला की देवी सरस्वती को हमारा भी नमन...
जब हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, सबसे पहले देवी सरस्वती की वन्दना की जाती थी...
भाई, आप हमारे ब्लॉग पर आपने अपने ब्लॉग पर आने का निमंत्रण दिया इसके लिए आभार...
आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है और आपकी रचनाएं भी अति सुन्दर हैं...
बहुत खूबसूरती से आपने माँ सरस्वती की वंदना और ग़ज़ल प्रस्तुत किया है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
bhai rajender ji,
jai rajasthani-jai rajasthan!
kain bat hai,aap mhare blogde khani dekho e koyni?ab to aap ro blog mhare blog mathe jhaka ghale-palka mare hai. gokho to sari ek bar!
aap re blog mathe mhain to nit ri feri saru kar e di.
rajendra ji ..teen rachnaayen teeono teen alag alag tarah ki zabaan me...rajsthani hai shayad teesari so mujhe samjh nahi aati ... haan aap ki ghazal bahut pasand aayi ..aur maa sarswati ki vandna ko naman...
"शस्वरं" का अर्थ नही समझ पा रहा हूँ!
"सस्वरं" का अर्थ तो मुझे आता है!
खैर इस बात से क्या लेना देना!
रचनाएँ तो सुन्दर लग रही हैं!
सुरुचिपूर्ण प्रयास. साधुवाद. नयी रचनाओं हेतु divyanarmada.blogspot.com देखिये. अनुसरण करें, टिप्पणी दें, रचना दें. संपर्क: salil.sanjiv@gmail.com
right way to start, welcome
आपके जैसे लेखकों की हिन्दी नेट पर बहुत आवश्यकता थी | आपने ब्लॉग बना कर बहुत अच्छा किया है | मेरी शुभकामनाएं |
ज़हर पीना पड़ेगा आप गर सुकरात बनते हो
अगर ईसा बनोगे ख़ुद सलीब अपनी उठाना है एक जीवन दर्शन छिपा है इन शब्दों में.....
...वल्लाह कमाल है।
blog bahut sundar, bhawnaaon ka kalkal prawaah , vidya kee archna, gazal kee madhurta...... adbhut sanyojan
राजेन्द्र जी,हम घर नहीं तो इसका अर्थ ये तो नहीं कि आप को पढ़ सकते ही नहीं। आप को पढ़ भी लिया और उस का आनंद भी लिया।
राजस्थानी भाषा के नियमित ब्लागों की आ्रवश्यकता है।
आप का ब्लाग की दुनिया में स्वागत है। राजस्थानी को लोकप्रिय बनाने मे आप का योगदान महत्वपूर्ण रहेगा।
आपके लेखन पर मैं कैसे कोई टिप्पणी कर सकती हूँ राजेन्द्र जी आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं ! आपको बहुत सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें ! ब्लॉग जगत में आपका बहुत बहुत स्वागत है ! इसी तरह अनुग्रह बनाए रखियेगा !
देरी से ही सही...मारी और से भी घणी शुभ कामना ले ल्यो...अर ईं शेर पे तो आंपा लुट गा...दीवाना होगा थारा...
थां'रो तन मदिरालय लिखसूं
मन नैं तीरथ धाम लिखूंला
धमाके दार शुरुआत है...बधाई...
नीरज
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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