ब्लॉग मित्र मंडली

30/4/10

"हमसे कौन लड़ाई बाबा ? " "पोली नींवां"


आज प्रस्तुत है ,
संवैधानिक मान्यता के लिए संघर्ष कर रही
दो क्षेत्रीय भाषाओं में सृजित मेरी दो ग़ज़ले
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हमसे कौन लड़ाई बाबा ?
हमसे कौन लड़ाई बाबा ? 
हो अब तो सुनवाई बाबा !
सबकी सुनता ; हमरी अब तक
 बारी क्यों ना आई बाबा ?
हमसे नाइंसाफ़ी करते '
तनिक रहम ना खाई बाबा ?
इक बारी मं कान न ढेरे
कितनी बार बताई बाबा ?

बार-बार का बोलें ? सुसरी
हमसे हो न ढिठाई बाबा !
नहीं अनाड़ी तुम कोई ; हम
तुमको का समझाई बाबा ?

दु:ख से हमरा कौन मेल था,
काहे करी सगाई बाबा ?
बिन बेंतन ही सुसरी हमरी
पग-पग होय ठुकाई बाबा !

तीन छोकरा, इक घरवाली,
है इक हमरी माई ; बाबा !
पर… इनकी खातिर भी हमरी
कौड़ी नहीं कमाई बाबा !

बिना मजूरी गाड़ी घर की
कैसन बता चलाई बाबा ?
हमरा कौनो और न जग मं
हम सबका अजमाई बाबा !

ना हमरा अपना भैया है,
ना जोरू का भाई ; बाबा !
और…
 मुई दुनिया आगे हम 
हाथ नहीं फैलाई बाबा !
जानके भी अनजान बने ;  है
इसमें तो'र बड़ाई बाबा ?
नींद में हो का बहरे हो ? हम
कितना ढोल बजाई बाबा ?

हम भी ज़िद का पूरा पक्का
गरदन इहां कटाई बाबा !
तुम्हरी चौखट छोड़' न दूजी
चौखट हम भी जाई बाबा !

कहदे, हमरी कब तक होगी
यूं ही हाड-पिंजाई बाबा ?
बोल ! बता, राजेन्द्र मं का है
ऐसन बुरी बुराई बाबा ?!

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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पोली नींवां
डीगा घर , पोली नींवां
जीवां , पण डर - डर' जीवां

सुणज्यो , म्है  ई शंकर हां
ज़्हैर जगत भर रो पीवां

फूल पखेरू देव मिनख
सै ओपै ठीवां - ठीवां

जाय'  न द् यां समदर मिळसी
…म्है जाणां म्हांरी सींवां


मन हरियो कर , मिल सैं स्यूं
राजेन्दर ! हां… अर नीं हां

-राजेन्द्र स्वर्णकार
 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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* राजस्थानी ग़ज़ल का भावानुवाद *

ऊंचे-ऊंचे मकान ,खोखली नींवें / जी रहे हैं ,
लेकिन डर-डर कर  जी रहे हैं /
सुनिए , हम भी शिव हैं / ज़माने भर का ज़हर पीते हैं /
फूल पक्षी  देवता मनुष्य / सभी अपने ठिकानों पर ही फबते हैं /
    नदियां जा'कर समुद्र में मिलेंगी /  
…हम हमारी सीमाएं जानते हैं /
प्रफुल्लित मन से  सबसे मिलिए / 
( अगले ही क्षण ) हम हैं…और नहीं हैं

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   और चलते चलते …
 


मेरे साथ जुड़ने वाले प्रत्येक आत्मीयजन को नमन !
पिछली पोस्ट में मेरी सस्वर प्रस्तुतियों पर
प्यार और अपनत्व से लबालब उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाओं  के लिए

आभार ! धन्यवाद ! शुक्रिया !


गुनगुनाने को मन करता है …

एहसान मेरे दिल पॅ तुम्हारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों


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23 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

rajendra ji aap ke blog ki har post umdaa 0r bahtareen rachnaao ka ek naya thikana hai ham jaise nausikhiyo k liye. chamakte sitare bilkul aapki rachnaao ki tarah hai.hamesha hame utsahit karne k liye jald se jald p6st lagaya kare. dhanyvaad. shyamal

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गहरे भाव लिए हुए
सुन्दर रचनाओं के लिए बधाई!

बेनामी ने कहा…

Sorry p6st ko post padhen. shyamal

तिलक राज कपूर ने कहा…

राजेन्‍द्र भाई,
दिल की गहराईयों से बधाई। उम्‍दा ग़ज़लें।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

वाह !! बहुत सुन्दर!!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

राजेंद्र जी...जय हो...भाषा के साथ साथ भाव का आनंद इतना आया की क्या कहूँ? अद्भुत रचनाएँ हैं आपकी...बधाई..
नीरज

jogeshwar garg ने कहा…

राजेन्द्रजी !
बेजुबानों को जुबान दिलवाने की लड़ाई में जुझारू तरीके से कूद पड़ने के लिए बधाई. ईश्वर आपकी और हम सब की मनोकामनाएं पूरी करे! लगे हाथों दोनों भाषाओं, उनके बोलने वालों और उनके संघर्ष के बारे में थोड़ा बता देते तो और अच्छा होता.
"हमसे कौन लड़ाई बाबा" हर दृष्टि से बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

behad umda rachnayen hain ..

girish pankaj ने कहा…

सुन्दर ग़ज़ल बनाई बाबा
हमको बेहद भाई बाबा
'स्वर्ण' सरीखा चमको हरदम
मेरी बहुत बधाई बाबा
हर भाषा का हो संरक्षण
बात समझ यह आई बाबा
कैसेसुधरेंगे ये शातिर
दिखते सभी कसाई बाबा
करते जाएँ बातें मन की
अपनी यही कमाई बाबा

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

आपका काम बहुत अच्छा है. ये यात्रा जारी रखें. कभी तो भला होगा.
अपनी माटी
माणिकनामा

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

in bahron ke aage dhol baja baja kar hamare purkhe chale gaye par hui nahin sunai baba!inka ilaj nahin hai.jitna rote han utna hi ye tante hain.khair!
sunder rachnaon ke liye badhai !

marwari digest ने कहा…

computer se door rahanewale rajendraji, ek din aap itne aage badh jayenge kalpana na kimaine. bahut achchha laga blog aur kavita "hamse kaun ladai baba" ek alag hi tewar, alag hi mahak hai is kavita me.

Alpana Verma ने कहा…

गरीब की सुनता कौन है?
- न जाने कितने असहाय मजबूरों की अनकही पुकार को व्यक्त किया है इस कविता में.
-बहुत अच्छी रचना है.

jogeshwar garg ने कहा…

राजेन्द्रजी!
राजस्थानी री ग़ज़ल भी घणी फूटरी बणी है. आख़री शेर में जरूर काफियो बिगड़ गयो. कथ्य और शिल्प दोन्यूं दीठ सूं ग़ज़ल प्रामाणिक है. घणी घणी बधाइयां.
एक शेर नज़र करुँ:
"एक सरीखा दोन्यूं हैं
पूत हुवे या व्है धीवां"

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आप में तो कोई बुराई नहीं है बाबा... इतनी अच्छी प्रस्तुति ..इतना अच्छा शब्दचित्र... दिल खुश हो गया...

sangeeta sethi ने कहा…

हमसे कौन लड़ाई बाबा बेहद संवेदनशील कविता है | साथ में लगा चित्र सोचने को मजबूर करता है |
ब्लॉग पर आपका प्रस्तुतिकरण भी अच्छा है | इसे बनाये रखें |

sangeeta sethi ने कहा…

हमसे कौन लड़ाई बाबा बेहद संवेदनशील कविता है | साथ में लगा चित्र सोचने को मजबूर करता है |
ब्लॉग पर आपका प्रस्तुतिकरण भी अच्छा है | इसे बनाये रखें |

Himanshu Pandey ने कहा…

हमसे कौन लड़ाई बाबा.. ने तो बाँध लिया ।
हर बार स्तब्ध करते हैं आप ।
प्रविष्टि का आभार ।

Gopal Singh ने कहा…

aapka blog dekh k bahut acha laga. hamse kon ladai baba or poli nivan dono hi rachnayen apne aap main unique hain. aap yadi ye jankari or likh dete ki ye kis bhasa main likhi gayi hai to sayad hamre gyan main or ijafa hota bahral aapke rachna karm k liye sadhuvad or bahut bahut shubkamnaen.
www.gorakhh.blogspot.com

प्रमोद ताम्बट ने कहा…

हमको भी कविताएँ/गज़लें बहुत ही भाई रे बाबा।

प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in

mridula pradhan ने कहा…

hamse kaun larayee..... bahot achche.

Narendra Vyas ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर श्‍लेषात्‍मक भाषा में मार्मिक चित्रण किया है आपने वर्तमान संवैधानिक प्रक्रिया में एक गरीब और आम आदमी की असहाय दशा तथा उपेक्षित क्षेत्रीय भाषा का |जो दशा एक आम गरीब की है वो ही इन दोनों क्षेत्रीय भाषाओं की भी देशा है। फिर भी अपनी हकपरस्‍ती के लिये आपकी ये पंक्तियां ''हम भी ज़िद का पूरा पक्कागरदन इहां कटाई बाबा !तुम्हरी चौखट छोड़' न दूजीचौखट हम भी जाई बाबा'' असर छोडती हुई आपके मन की पीडा को भी उजागर करती हैं | एक सार्थक, सच्‍ची और यथार्थ रचना के लिये आपको बधाई और हार्दिक आभार । जय हिन्‍द | जय राजस्‍थान ।।

R.Venukumar ने कहा…

हो अब तो सुनवाई बाबा !
सबकी सुनता;हमरी अब तक बारी क्यों ना आई बाबा ?
बिन बेंतन ही सुसरी हमरीपग-पग होय ठुकाई बाबा !
तीन छोकरा, इक घरवाली,है इक हमरी माई ; बाबा !
नींद में हो का बहरे हो ? हम कितना ढोल बजाई बाबा ?हम भी ज़िद का पूरा पक्कागरदन इहां कटाई बाबा !


अभिनव अभिव्यक्ति!!बधाई राजेन्द्र जी !
इस तरह के प्रयोग बहुत कम हुए हैं.. सीधे और सटीक