आज प्रस्तुत है ,
आशा का संचार करता , मेरी पसंद का ,
मेरा लिखा और मेरे द्वारा धुन बना कर गाया हुआ एक गीत
आशा का संचार करता , मेरी पसंद का ,
मेरा लिखा और मेरे द्वारा धुन बना कर गाया हुआ एक गीत
मन हार न जाना रे !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
स्याह कलंकित रैन से अगला चरण सुरम्य सवेरा है !
मन हार न जाना रे !
जिन दीयों की चुकी स्निग्धता , वे प्रकाश कब तक देंगे ?
वे परिवेश प्रदूषित कर के , धुआं - कुहासा भर देंगे !
वातावरण परिष्कृत करने ' रवि नव धूप बिछाएगा !
अस्तु , मिटे अविलंब यहां जो कल्मष धुआं अंधेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
युग अभिशप्त ; श्रेष्ठ की कोई परख कसौटी भाव नहीं !
गिरवी जिह्वा नयन हृदय सब ; सत्यनिष्ठ सद्भाव नहीं !
अभय , प्रलोभन - रहित आत्मा मूल्यांकन करती ; इसने
यत्र तत्र सर्वत्र नित्य सुंदर शिव सत्य उकेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई ?
शिथिल न हो मन , क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई !
निर्मलता निश्छलता सच्चाई , संबल शक्ति तेरे !
कुंदन तो कुंदन है , क्या यदि कल्मष ने आ घेरा है ?
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
स्याह कलंकित रैन से अगला चरण सुरम्य सवेरा है !
मन हार न जाना रे !
जिन दीयों की चुकी स्निग्धता , वे प्रकाश कब तक देंगे ?
वे परिवेश प्रदूषित कर के , धुआं - कुहासा भर देंगे !
वातावरण परिष्कृत करने ' रवि नव धूप बिछाएगा !
अस्तु , मिटे अविलंब यहां जो कल्मष धुआं अंधेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
युग अभिशप्त ; श्रेष्ठ की कोई परख कसौटी भाव नहीं !
गिरवी जिह्वा नयन हृदय सब ; सत्यनिष्ठ सद्भाव नहीं !
अभय , प्रलोभन - रहित आत्मा मूल्यांकन करती ; इसने
यत्र तत्र सर्वत्र नित्य सुंदर शिव सत्य उकेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई ?
शिथिल न हो मन , क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई !
निर्मलता निश्छलता सच्चाई , संबल शक्ति तेरे !
कुंदन तो कुंदन है , क्या यदि कल्मष ने आ घेरा है ?
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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गीत : मन हार न जाना रे !
यहां सुनिए !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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और यहां पेंसिल से बनाया मेरा स्वयं का चित्र
बीते ज़माने की एक और निशानी
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आपकी आत्मीयता !
आपका प्रेम !
आपका अपनत्व !
पा'कर अभिभूत हूं मैं !
हा र्दि क आ भा र !
नये मित्रों का उन्मुक्त हृदय से स्वागत है !
आ रहा हूं पुनः , शीघ्रातिशीघ्र नई पोस्ट ले'कर
नये मित्रों का उन्मुक्त हृदय से स्वागत है !
आ रहा हूं पुनः , शीघ्रातिशीघ्र नई पोस्ट ले'कर
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37 टिप्पणियां:
सुन्दर कविता और गायन |बहुत अच्छा शब्द चयन |
बहुत बहुत बधाई |ऐसे ही लिखते रहिये जिससे कविता क्या होती है जाना जा सके |पुनःबधाई
आशा
भई वाह राजेन्द्र जी!
क्या कहना इस मधुर गीत का!
--
हम तो इसमें डूब ही गये!
--
आशा का संचार करता बहुत सुन्दर गीत!
badhiya geet....sundar prstuti ke liye aabhar..
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
sunder geet...
par aaj sun nahin paa rahe hain...speakers problem kar rahe hain...
sketch shaandaar hai.....
khaaskar julfein dil jalaa rahin hain...
सच , बहुत आशातीत गीत है ।
गायन का आनंद तो शाम को ही ले पाएंगे ।
स्केच देखकर अपने बीते बाल याद आ गए ।
Bahut sunder ashawadi geet. Aapka gayan bhee bahut madhur hai.
हर तरफ छा गये...पढ़ना, सुनना और चित्रकारी देखना..जय हो!!
बहुत सुंदर और प्रोत्साहित करने वाला गीत है
युग अभिशप्त..........
बहुत बढ़िया और सच्ची पंक्तियां
यही सोच जीवन को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है
सुंदर शब्दों और उत्तम भाषा का प्रयोग
वाह!
बधाई स्वीकार करें
bahut sundr geet! saarthak rachna .. inspire kar rahi hai.. aapki awaz bhi achhi hai
अनूठे शब्द प्रयोग से आशा का संचार करता आप का ये गीत अप्रतिम है...प्रस्तुतीकरण मनभावन और आपका रेखा चित्रण अद्भुत...बहुत बहुत बधाई...
नीरज
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
बहुत बढ़िया और रोचक पोस्ट!
Thursday, 22 July, 2010
बढ़िया
देखती हूँ इतने कठिन शब्दों को भी सुरों में कितनी शुद्धता और स्पष्टता से गा लेते हैं आप ....!!
और आपकी ये गंभीर कशिश भरी आवाज़ पंक्तियों में जान डाल देती है .....
किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई
शिथिल न हो मन, क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई
मन हार न जाना रे .......!!
सच्च में कुंदन तो कुंदन ही है ......
और इक बात अधिकतर कवि ह्रदय बहुत अच्छे चित्रकार होते हैं ....ब्लॉगजगत में ही ....मनु जी , प्रकाश गोविन्द ,उषा पाण्डे , कई हैं जो बहुत अच्छी चित्रकारी करते हैं ....
बहुत अच्छा... हूबहू चित्र ....कमाल का हुनर है आपमें ......
पर कोई मुस्कुराती हुई तस्वीर तो चुनते ......?
डा दराल जी की टिपण्णी पे मुस्कुरा रही हूँ ......!!
बहुत ही सुन्दर्।
राजेन्द्र जी बहुत अच्छा गीत पढ़ने और सुनने को मिला ...साथ ही आपकी चित्र कला भी बहुत सुंदर है...आपमें हर कला भरी है...लिखना,गाना,चित्र बनाना..अद्वितीय है आपकी प्रतिभा
राजेन्द्र जी बहुत अच्छा गीत पढ़ने और सुनने को मिला ...साथ ही आपकी चित्र कला भी बहुत सुंदर है...आपमें हर कला भरी है...लिखना,गाना,चित्र बनाना..अद्वितीय है आपकी प्रतिभा
लेखन , गायन और चित्रांकन की आपकी बहुमुखी प्रतिभा को नमन.
sahityi knikash par khara hai geet. sundar, alankarik shabd-chayan ke karan geet aur prabhavshalee ho gaya hai. ab aise geet kam likhe jate hai. aapne lupt hotee geet-paramparaa ko aage barhaya. badhai..
वाह , वाह , वाह !
बिन साज़ ऐसी आवाज़ !
बिल्कुल जादुई सी लगती है ।
बहुत बढ़िया गाया है राजेंद्र जी ।
आनंद आ गाया ।
कभी हमारे भी बाल और बोल , ऐसे ही थे ।
बहुत ही सुन्दर शब्दों का
शानदार संयोजन .....
और मधुरिम संगीत की लहरी
आनंद !!
सुप्रिय दराल साहब ,
माशाअल्लाह … कभी क्यों , अभी भी आपकी पर्सनेलिटी अच्छे अच्छों में ईर्ष्या पैदा करदे ऐसी है ।
आपने ग़ौर किया ही होगा … हरकीरत जी आपकी टिप्पणी पर मुस्कुरा रही थीं सुबह …! मुझे तो ईर्ष्या तबसे ही हो रही है …
हा हा हा …
आपके प्रति प्यार और सम्मान दिन ब दिन बढ़ रहा है …
स्नेह अपनापन बनाए रखें ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आप की रचना 23 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
बेहद प्रशंशनीय पोस्ट ..
राजेंद्र जी...बधाई..
बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं आप.. बहुत खूब..
abhee bhee sab kuchh hai vishwas nahin hota.
बहुत सुन्दर गीत...आनन्द आया सुन कर
Rajendra jee blog par aane ke liye aabhar.Ek achhe gayak,kavi,chitrakar,vyangkar aur na jane kya kya hain aap.Apse jan -pehchan kar aanand aa gaya.
स्वर्णकार साहब
बहु ही लयात्मक गीत......गुनगुनाते हुए पढ़ा तो लगा कि साज़ परिदृश्य में कहीं बज रहा है.....गीत अद्भुत है...जितनी तारीफ की जाये कम है.....
आपकी चित्रकला व गायन , लेखन , जैसी हर कला से अलंकृत पृष्ठ आपकी मेहनत और लहान का परिचायक है ..सफलता की मंगल कामनाएं व आशिष सहित.
- लावण्या
U S A से पहली बार आदरणीया लावण्या जी शाह का आशीर्वाद मिला …
Lavni:~ to me 9:56 PM (20 minutes ago)
" आपकी चित्रकला व गायन , लेखन , जैसी हर कला से अलंकृत पृष्ठ
आपकी मेहनत और लगन का परिचायक है ..
सफलता की मंगल कामनाएं व आशिष सहित."
- लावण्या
सच में बहुत आनंददायक रहा पढना और सुनना.
ummeed ka hath thame chalta hua ek achha geet hai swarnkar ji...
aap to vahut manje huye kalaakaar hain.. very nice..vahut khoovsurat...wish you all the good wishes... with love
बहुत खूब, भाई आप का जवाब नही.....
वाह!वाह!वाह! बहुत ही सुन्दर गीत..कला का अद्भुत संगम दीखता है आप की पोस्ट पर.
सच में बहुत सुंदर गीत है .... आशा की पींग बड़ाता ...
अप्रतिम गीत, दमदार आवाज़, सुंदर चित्र...
आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
गायन, लेखन, चित्रांकन, हर विधा में माहिर हैं आप...आपके हुनर को सलाम, स्नेह बनायें रखें...
हिमकर श्याम
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